#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य, ५. मध्याक्षरी - २ =*
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*सब गुन युक्त सु कौंन ॥ बिचित्र ॥*
*कौंन सकुचै नहिं देतैं ॥ उदार ॥*
*बिष्णु पारषद कौंन ॥ सुनंद ॥*
*दूर दुख कौंन तजे तैं ॥ मदन ॥*
*समुझत नहीं सु कौंन ॥ अचेत ॥*
*कौंन हरि सुमिरत भागै ॥ पातक ॥*
*बनिक बृति कहि कौंन ॥ बन्यज ॥*
*कौंन जल बर्षन लागै ॥ मघवा ॥*
*कहि कौंन नृपति तजि द्वन्द्व सब ॥ जनक ॥*
*सदा रहै मध्यस्थ मन ॥*
*यौ सुन्दर आपुहि जानि तूं ॥*
*‘चिदानन्द चेतन्य घन’॥२॥*
द्वितीय पद :
प्रश्न : सर्वगुण सम्पन्न कौन होता है ? उत्तर : चतुर, अद्भुत, प्रतिभावान पुरुष ।
प्रश्न : कौन देने में संकोच नहीं करता ? उत्तर : दानी ।
प्रश्न : विष्णु भगवान् का सखा कौन है ? उत्तर : सुनंद ।
प्रश्न : कौन दुःख कठिनता से त्यागा जा सकता है ? उत्तर : कामवासना ।
प्रश्न : उचित बात भी किसको समझ में नहीं आती ? उत्तर : अविवेकी(मुर्ख) को ।
प्रश्न : भगवान् का स्मरण कौन नहीं करता ? उत्तर : पापी जन ।
प्रश्न : वणिक् का व्यापर क्या है ? उत्तर : वस्तु को बेचना एवं खरीदना ।
प्रश्न : वृष्टि कौन करता है । उत्तर : इन्द्र(पुराण शास्त्र के अनुसार )
प्रश्न : किस राजा के सब दुःख द्वन्द्व दूर हो गये थे ? उत्तर : राजा जनक ।
प्रश्न : सदा मध्यस्थ कौन रहता है ? उत्तर : मन । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - इस प्रकार तूँ समझ ले कि यह चेतन ही चिन्मय, आनन्दमय एवं चेतन्मय है ॥२॥
(क्रमशः)
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य, ५. मध्याक्षरी - २ =*
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*सब गुन युक्त सु कौंन ॥ बिचित्र ॥*
*कौंन सकुचै नहिं देतैं ॥ उदार ॥*
*बिष्णु पारषद कौंन ॥ सुनंद ॥*
*दूर दुख कौंन तजे तैं ॥ मदन ॥*
*समुझत नहीं सु कौंन ॥ अचेत ॥*
*कौंन हरि सुमिरत भागै ॥ पातक ॥*
*बनिक बृति कहि कौंन ॥ बन्यज ॥*
*कौंन जल बर्षन लागै ॥ मघवा ॥*
*कहि कौंन नृपति तजि द्वन्द्व सब ॥ जनक ॥*
*सदा रहै मध्यस्थ मन ॥*
*यौ सुन्दर आपुहि जानि तूं ॥*
*‘चिदानन्द चेतन्य घन’॥२॥*
द्वितीय पद :
प्रश्न : सर्वगुण सम्पन्न कौन होता है ? उत्तर : चतुर, अद्भुत, प्रतिभावान पुरुष ।
प्रश्न : कौन देने में संकोच नहीं करता ? उत्तर : दानी ।
प्रश्न : विष्णु भगवान् का सखा कौन है ? उत्तर : सुनंद ।
प्रश्न : कौन दुःख कठिनता से त्यागा जा सकता है ? उत्तर : कामवासना ।
प्रश्न : उचित बात भी किसको समझ में नहीं आती ? उत्तर : अविवेकी(मुर्ख) को ।
प्रश्न : भगवान् का स्मरण कौन नहीं करता ? उत्तर : पापी जन ।
प्रश्न : वणिक् का व्यापर क्या है ? उत्तर : वस्तु को बेचना एवं खरीदना ।
प्रश्न : वृष्टि कौन करता है । उत्तर : इन्द्र(पुराण शास्त्र के अनुसार )
प्रश्न : किस राजा के सब दुःख द्वन्द्व दूर हो गये थे ? उत्तर : राजा जनक ।
प्रश्न : सदा मध्यस्थ कौन रहता है ? उत्तर : मन । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - इस प्रकार तूँ समझ ले कि यह चेतन ही चिन्मय, आनन्दमय एवं चेतन्मय है ॥२॥
(क्रमशः)

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