सोमवार, 25 नवंबर 2019

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*स्वर्ग नरक सुख दुख तजे, जीवन मरण नशाइ ।*
*दादू लोभी राम का, को आवै को जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मध्य का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* * स्मरण भक्ति* 
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शस्त्रों से, पर्वत से गिराने से, समुद्र में डूबोने से, सर्पों, सिंहों, मतवाले हाथी, भूख, हलाहल विष और अग्नि आदि से प्रहलादजी को लेश मात्र भी भय नहीं हुआ था । जब होलिका अपने शीतल चीर को ओढकर के प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी तब हिरणकशिपु भी देखने आया था । होलिका भस्म हो चुकी थी । 
प्रहलाद अग्नि की लपटों में बैठे हुए मन्द मन्द मुस्करा रहे थे । हिरणयाकशिपु ने पुछा - 'तुझे डर नहीं लगता ? प्रहलाद बोले - संपूर्ण दुखों को नाश करने वाली एक मात्र औषधी रूप राम नाम का जप करने वालों को भय कहां । पिताजी ! देखिये इस समय मेरे शरीर के लगने वाली अग्नि की लपटें भी जल के समान शीतल हो गयी हैं ।' 
इससे सूचित होता है कि ईश्वर का नाम जपने से मन में परम निर्भयता आ जाती है ।
नाम जाप से अभयता, आती है मन माँहि ।
अग्निआदि से प्रहलादजी, डरे लेश भी नाँहिं ॥१०९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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