शनिवार, 23 नवंबर 2019

= *दया अदया मिश्रित दोष का अंग ९२(६/१०)* =

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*जब परम पदार्थ पाइये, तब कंकर दिया डार ।*
*दादू साचा सो मिले, तब कूड़ा काज निवार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*दया अदया मिश्रित दोष का अंग ९२*
महर१ कहर२ माँहि मिली, तो खैर३ खैरि में नाँहिं । 
यहु रज्जब अज्जब कही, समझ देख मन माँहिं ॥६॥ 
यदि दया१ क्रोध२ में मिली हुई है तो भलाई३ में भलाई नहीं है । यह बात अदभुत कही गई है किन्तु मन में विचार करके देखने से अदभुत नहीं सिद्ध होती । 
पुण्य प्रभाकर१ उदय को, पाप प्रपंड सु राह२ । 
अंग३ उजास४ सु मिलत५ हैं, चखि६ त्रिभुवन तम बाह७ ॥७॥ 
धन्य७ है जो त्रिभुवन के अंधेरे को खा जाता है, उस सूर्य१ के उदय होने पर केतु२ सूर्य के प्रकाश४ रूप भाग३ को खा जाता५ है, वैसे ही पुण्य को प्रचंड पाप निगल६ जाता है । 
सुत सुकृत को गिलत है, साँपिनि सुधि१ बिन दास । 
पुण्य मध्य पापहि करत, प्राणी जाय निराश ॥८॥ 
जैसे साँपिन अपने ही पुत्र को निगल जाती है, वैसे ही दास भक्त बिना ज्ञान१ दया में दुष्टता करके पुण्य को नष्ट कर देता है । पुण्य में पाप करने से प्राणी की आशा पूर्ण नहीं होती । 
सुकृत में कुकृत कुचिल१, ज्यों शशि मध्य कलंक । 
पुण्य पियूष२ सों प्राण पोषिये, वपु हु बुराई बंक ॥९॥ 
जैसे चन्द्र में कालापन रूप कलंक खराब है, वैसे ही पुण्य में पाप खराब१ होता है । चन्द्रमा अमृत२ से प्रणियों का पोषण करता है फिर भी उसके शरीर में कालापन और वक्रता अच्छी नहीं लगती, वैसे ही पुण्य से भला होता है किन्तु उसमें पाप अच्छा नहीं लगता । 
धर्म अस्थानक कर्म न शोभै, यथा नैन मधि१ फूला । 
आतम आँखि अंधियारा भइला२, कहिये कहा सु सूला३ ॥१०॥ 
जैसे नैत्र में१ फूला शोभा नहीं देता, वैसे ही धर्म के स्थान में कुकर्म शोभा नहीं देता । फूले से आँख में अंधेरा हो२ जाता है और कुकर्म से जीवात्मा में जो कष्ट३ होता है उसे तो क्या कहें, वह तो अत्यधिक भयंकर है । 
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित अदया मिश्रित दोष का अंग ९२ समाप्तः ॥सा. २९०४॥
(क्रमशः)

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