शनिवार, 23 नवंबर 2019

= १०७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
१०७ - गजताल 
तूँ ही तूँ आधार हमारे, 
सेवक सुत हम, राम तुम्हारे ॥टेक॥ 
माइ बाप तूँ साहिब मेरा, 
भक्ति - हीण मैं सेवक तेरा ॥१॥ 
मात पिता तूँ बान्धव भाई, 
तुम हीं मेरे सजन सहाई ॥२॥ 
तुम हीं तातँ तुम हीं मातँ, 
तुम हीं जातँ तुम हीं न्यातँ ॥३॥ 
कुल कुटुम्ब तूँ सब परिवारा, 
दादू का तूँ तारणहारा ॥४॥ 
हे राम ! हम मन वचन से कहते हैं - आपही हमारे आश्रय हैं और हम आपके सेवक तथा सुत हैं । 
आप ही हमारे माता - पिता और स्वामी हैं और मैं आपका भक्तिहीन सेवक हूं । 
आप ही हमारे जन्म - जन्मान्तरों के माता, पिता, बान्धव, भ्राता, मित्र और सहायक हैं । आप ही हमारे पारमार्थिक माता - पिता हैं । 
आप ही मेरे जाति, न्याति, कुल, कुटुम्ब, परिवार आदि सब कुछ हैं, मेरा उद्धार करने वाले भी आप ही हैं । 
(क्रमशः)

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