🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*यहु सब माया मृग जल, झूठा झिलमिल होइ ।*
*दादू चिलका देखि कर, सत कर जाना सोइ ॥*
*छलावा छल जायगा, सपना बाजी सोइ ।*
*दादू देख न भूलिये, यहु निज रूप न होइ ॥*
============================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com
*मुश्किल? इसका मतलब है कि अभी भी अपेक्षा बनी है; नहीं तो क्या मुश्किल है? मुश्किल का मतलब है, अभी भी मनुष्य चाहता है कि सुविधा हो जाती, कुछ सफलता मिल जाती, कुछ तो राहत दे देते।* एकदम हार ही हार तो मत दिलाए चले जाओ। कुछ बहाना तो, कुछ निमित्त तो रहे जीने का। 'रात कटती नहीं, दिन गुजरता नहीं।
.
फिर से गौर से देखे मनुष्य, क्योंकि जानने वालों ने तो कहा कि जगत माया है; इससे जख्म तो हो ही नहीं सकता। यह तो ऐसा ही है—ज्ञानीजन बार—बार कहते हैं—जैसे रज्जू में सर्प। *जैसे कोई आदमी अंधेरे में देख कर रस्सी और भाग खड़ा हो कि सांप है; भागने में पसीना—पसीना हो जाए, छाती धड़कने लगे, हृदय का दौरा पड़ने लगे—और कोई दीया ले आए और कहे कि पागल, जरा देख भी तो, वहां न कुछ भागने को है, न कुछ भयभीत होने को है ! रस्सी पड़ी है।*
.
यह संसार प्रतीत होता, भासमान होता। और भासमान ऐसा होता है कि लगता है सच है। *लेकिन एक दिन मनुष्य नहीं था और एक दिन फिर नहीं हो जाएगा। यह जो बीच का थोड़ी देर का खेल है, यह एक दिन सपने जैसा विलीन जाएगा* पीछे लौट कर देखे मनुष्य -तीस साल जी लिया,चालीस साल जी लिया; पचास साल जी लिया-ये जो पचास साल मनुष्य जी लिया-आज क्या पक्का निर्णय कर सकता है कि सपने में देखे थे पचास साल या असली जीये थे?
.
अब तो सिर्फ स्मृति रह गई। स्मृति तो सपने की भी रह जाती है। आज क्या उपाय है यह जांच करने का कि जो पचास साल जीए, ये वस्तुत: मनुष्य ने जीया था। वस्तुत: या एक सपने में देखी कथा है? बडी मुश्किल में पड़ जाएगा, बड़ा चित्त बेचैन हो जाएगा; अगर सोचने बैठगा,अगर इस पर ध्यान करेगा तो बड़ा बेचैन, पसीने —पसीने हो जाएगा। क्योंकि पकड़ न पाएगा सूत्र कि यह कैसे सिद्ध करें कि जो मैंने, सोचता हूं कि देखा, वह सच में देखा था, या केवल एक मृग—मरीचिका थी?
.
मरते वक्त जब मौत द्वार पर खड़ी हो जाएगी और मौत का अंधकार घेरने लगेगा, क्या याद न आएगी कि जो साठ, सत्तर, अस्सी साल जीवन जीया, वह था? कैसे तय करेगा कि वह था? मृत्यु सब पोंछ जाएगी। *कितने लोग इस जमीन पर रहे, कितने लोग इस जमीन पर गुजर गए, आए और गए—उनका आज कोई भी तो पता—ठिकाना नहीं है। फिर इस सब दौड़—धूप का, इस आकांक्षा— अभिलाषा का, इस महत्वाकांक्षा का क्या अर्थ है? क्या सार है?*
.
इस सत्य को देख कर जो जागता, फिर वह ऐसा नहीं कहता कि 'रात कटती नहीं, दिन गुजरता नहीं।' फिर वह ऐसा नहीं कहता कि 'जख्म ऐसा दिया जो भरता नहीं। आंख वीरान है, दिल परेशान है, गम का सामान है। *यह तो सब आशा—अपेक्षा की ही छायाएं हैं। इनसे कोई धार्मिक नहीं होता। और इनके कारण जो आदमी धार्मिक हो जाता है, वह धर्म के नाम पर संसार की ही मांग जारी रखता है। वह मंदिर में भी जाएगा तो वही मांगेगा जो संसार में नहीं मिला है ! उसका स्वर्ग उन्हीं चीजों की पूर्ति होगी जो संसार में नहीं मिल पायी हैं; उनकी आकांक्षा वहां पूरी कर लेगा।*
.
*इसलिए तो स्वर्ग में कल्पवृक्ष लगा रखे हैं; उनके नीचे बैठ गए, सब पूरा हो जाता है।* एक आदमी भूले— भटके कल्पवृक्ष के नीचे पहुंच गया। उसे पता नहीं था कि यह कल्पवृक्ष है। वह उसके नीचे बैठा, बड़ा थका था। उसने कहा, 'बड़ा थका—मांदा हूं। ऐसे में कहीं कोई भोजन दे देता। मगर कहीं कोई दिखाई पड़ता ही नहीं।
.
ऐसा उसका सोचना ही था कि अचानक भोजन के थाल प्रगट हुए। वह इतना भूखा था कि उसने ध्यान भी न दिया कि कहां से आ रहे हैं? क्या हो रहा है? भूखा आदमी, मर रहा था। उसने भोजन कर लिया। भोजन करके उसने सोचा, बड़ी अजीब बात है। मगर दुनिया है, यहां सब होता है, हर चीज होती है। इस वक्त तो अब चिंता करने का समय भी नहीं, पेट खूब भर गया है। उसने डट कर खा लिया है। जरूरत से ज्यादा खा लिया, तो नींद आ रही है। तो वह सोचने लगा कि एक बिस्तर होता तो मजे से सो जाते। सोचना था कि एक बिस्तर लग गया।
.
जरा सा शक तो उठा मगर उसने सोचा, 'अभी कोई समय है ! अभी तो सो लो, देखेंगे। अभी तो बहुत जिंदगी पड़ी है, जल्दी क्या है, सोच लेंगे।' सो भी गया। जब उठा सो कर, अब जरा निश्चित था। अब उसने देखा चारों तरफ कि मामला हो क्या रहा है। यहां कोई भूत—प्रेत तो नहीं हैं ! भूत—प्रेत खड़े हो गए, क्योंकि वह तो कल्पवृक्ष था। उसने कहा, मारे गए ! तो मारे गए ! कि भूत—प्रेत झपटे उन पर, वे मारे गए। *कल्पवृक्ष की कल्पना कर रखी है स्वर्ग में। जो—जो यहां नहीं है, वहा सिर्फ कामना से मिलेगा।*
.
आदमी की कामना कैसी है ! यहां तो श्रम करना पड़ता है; कामना से ही नहीं मिलता। श्रम करो, तब भी जरूरी नहीं कि मिले। कहां मिलता? श्रम करके भी कहां मिलता? तो इससे ठीक विपरीत अवस्था स्वर्ग में है। *वहां सोचा नहीं कि मिला नहीं। तत्क्षण ! उसी क्षण ! समय का जरा भी अंतराल नहीं होता। लेकिन ध्यान रहे, मनुष्य वहाँ भी सुखी न हो सकेगा।*
.
देखा, इस आदमी की क्या हालत हुई ! जहां सब मिल जाएगा वहां भी सुखी न हो सकेग। क्योंकि सुखी तब तक हो ही नहीं सकता, जब तक मनुष्य सुख में भरोसा करता है। सुख से जागो ! सुख से जागने से ही दुख विसर्जित हो जाता है। न्याय मिलता नहीं, परमात्मा के घर तो मिलेगा ! लोग कहते हैं, वहां देर है अंधेर नहीं। कहते हैं, चाहे देर कितनी हो जाये, जन्म के बाद मिले, जन्मों के बाद मिले, मरने के बाद; लेकिन न्याय तो मिलेगा। अंधेर नहीं है। लेकिन आकांक्षाएं अपनी जगह खड़ी हैं। कहता है मनुष्य कभी तो भरी जायेंगी ! देर है, अंधेर नहीं।
.
*बुद्ध ने कहा, मैंने दो ही बातें सिखाईं : दुख है, इसके प्रति जागो; और दुख से पार होने का उपाय है—साक्षी हो जाओ ! बस इससे ज्यादा मुझे कुछ कहना नहीं, मेरी देशना पूरी हो गई। तुम ये दो काम कर लो, बाकी तुम खोज लेना।*

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें