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*अजर जरै रस ना झरै, घट मांहि समावै ।*
*दादू सेवक सो भला, जे कहि न जनावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ जरणा का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *एकाग्रहता*
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एक संत एकाग्र मन से ईश्वर भजन मे लगे हुये थे । एक व्यक्ति ने उनसे कुछ पूछने का विचार किया । संत बोले-कहने-सुनने की अपेक्षा तो भजन करना ही श्रेष्ठ है ।
फिर उसने पूछा - मनुष्य में श्रेष्ठ कौन है ? संत -जिसे भगवान् बनावे वही श्रेष्ठ है ।
फिर उसने पूछा - क्या आप अकेले ही रहते हैं ? संत - मेरे साथ सदा भगवान् है ।
फिर उसने पूछा - सुख का मार्ग क्या है ? तब वे संत आकाश की ओर देखते हुए खड़े हो गये और यह कहकर चल पड़े कि - विशेष परिचय एकाग्रता में बाधक है ।
बाधक एकाग्रता का, अति परिचय सत जान ।
यही बोलकर चल पड़े, एक संत भतिमान॥३१५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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