गुरुवार, 14 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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१०२ - विनती, राज विद्याधर ताल
दयाल अपने चरनिन मेरा चित्त लगायहु, 
नीकैं ही करी ॥टेक॥
नख शिख सुरति शरीर, तूँ नाँव रहौं भरी ॥१॥
मैं अजाण मति हींण, जम की पाश तैं रहत हूं डरी ॥२॥
सबै दोष दादू के दूर कर, तुम ही रहो हरी ॥३॥
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नित्य प्रभु परायण रहने के लिये प्रभु से विनय कर रहे हैं - दयालो ! बहुत अच्छी प्रकार दया करके मेरा चित्त निरन्तर अपने चरणों में ही लगाओ । 
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नख से शिखा पर्यन्त शरीर और मेरी वृत्ति में आप अपना नाम परिपूर्ण करके मेरे हृदय में ही रहो । आपको कैसा साधन प्रिय है, यह मैं नहीं जानता । 
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कारण, पारमार्थिक बुद्धि से रहित हूं और निरन्तर यम की फांसी से डरता रहता हूं । 
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हे प्रभो ! अब तो मेरे सब दोष दूर करके मेरे हृदय में निरन्तर एक मात्र आपही निवास करो ।
(क्रमशः)

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