शनिवार, 9 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू पुरुष हमारा एक है, हम नारी बहु अंग ।*
*जे जे जैसी ताहि सौं, खेलैं तिस हि रंग ॥*
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साधारणतः परम शक्ति के संपर्क में आना अति कठिन है। परम शक्ति के संपर्क में आने के लिए बड़ी छलांग, बड़े साहस की आवश्यकता है। परम शक्ति के संपर्क में आने का अर्थ अपने को पूरी तरह जलाकर भस्म, राख कर डालना है। जो अपने मैं को जरा भी बचाना चाहे, वह परम शक्ति के संपर्क में नहीं आ सकता। जैसे सूर्य के पास कोई पहुंचना चाहे, तो भस्म हो ही जाएगा। ऐसे ही परम शक्ति के पास कोई पहुंचना चाहे, तो स्वयं को मिटाए बिना कोई मार्ग नहीं है। इसलिए परम साहस है।
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*धार्मिक व्यक्ति ठीक अर्थों में अपने को मिटाने के साहस से ही पैदा होता है। इसलिए बहुत लोग इतना साहस तो नहीं कर पाते हैं। परन्तु फिर भी सूर्य के पास कोई न जा पाए, तो भी अंधेरे में ही रहे, ऐसा आवश्यक नहीं है। छोटे मिट्टी के दीए भी जलाए जा सकते हैं। और मिट्टी के छोटे से दीए में जो ज्योति जलती है, वह भी महासूर्यों का ही भाग है। परन्तु वह जलाती नहीं, वह मिटाती नहीं; वह आपके हाथ में उपयोग की जा सकती है।*
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देवता परम शक्ति के समक्ष दीयों की तरह हैं, छोटे दीयों की तरह हैं। देवता उन चेतनावों का नाम है, इसे थोड़ा-सा समझ लेना आवश्यक होगा, तभी यह बात ठीक से विचार में आ सकेगी।
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जैसे ही कोई व्यक्ति मरता है, इस शरीर को छोड़ता है, साधारणतः सौ में निन्यानबे अवसरों पर तत्काल ही जन्म हो जाता है। कभी-कभी, यदि व्यक्ति बहुत बुरा रहा हो, तो तत्काल जन्म कठिन होता है; या व्यक्ति बहुत भला रहा हो, तो भी तत्काल जन्म कठिन होता है। बहुत भले व्यक्ति के लिए भी गर्भ खोजने में समय लग जाता है। वैसा गर्भ उपलब्ध होना चाहिए। बहुत बुरे व्यक्ति को भी। मध्य में जो हैं, उन्हें तत्काल गर्भ उपलब्ध हो जाता है। जो बहुत बुरे व्यक्ति हैं, उन्हें कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है, करनी पड़ती है; जब तक उनके योग्य उतना बुरा गर्भ उपलब्ध न हो सके। ऐसी आत्माओं को प्रेत पारिभाषिक शब्द है--ऐसी प्रतीक्षा कर रही आत्माओं का, जो नई देह को उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं, बहुत बुरी हैं इसलिए। बहुत भली आत्माएं भी शीघ्र जन्म को उपलब्ध नहीं हो पातीं। ऐसी प्रतीक्षा करती आत्माओं का नाम देवता है। वह भी पारिभाषिक शब्द है।
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जो सीधे परमात्मा से संबंधित नहीं हो पाते, वे भी चाहें तो देवताओं से संबंधित हो सकते हैं। बुरी आत्माएं बुरा करने के लिए आतुर रहती हैं, देह न हो तो भी। अच्छी आत्माएं अच्छा करने के लिए आतुर रहती हैं, देह न हो तब भी। इन आत्माओं का साथ मिल सकता है। इसका पूरा अलग ही विज्ञान है कि इन आत्माओं का साथ कैसे मिल सके? परन्तु आमंत्रण से, निमंत्रण से इन आत्माओं से संबंधित हुआ जा सकता है। समस्त यज्ञ आदि शुभ आत्माओं से संबंध स्थापित करने की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं थीं। जिसे संसार में कला जादू कहते हैं, उस की प्रक्रियाएं बुरी आत्माओं से संबंध स्थापित करने की प्रक्रियाएं थीं।
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श्री कृष्ण कहते हैं, जो सीधा मुझको न भी उपलब्ध हो, वह भी देवताओं की पूजा और अर्चना से शुभ कर्मों को करता हुआ, शुभ को उपलब्ध हो सकता है। जो परम सत्य को उपलब्ध न भी हो, वह भी शुभ को उपलब्ध हो सकता है। दो कारणों से वह शुभ को उपलब्ध होगा। एक तो, जो शुभ की आकांक्षा करता है, वह शुभ कर्म करता है। आकांक्षा का साक्षी और कुछ भी नहीं है केवल कर्मों के। हम जो करते हैं, वही साक्षी है हमारी आकांक्षाओं की। हमारा कर्म ही हमारे प्राणों की प्यास की जानकारी है।
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इस जगत में हम अकेले नहीं हैं। हमारे चारों ओर और बहुत शक्तियां काम कर रही हैं। जब हम बुरा होना चाहते हैं, तो बुरी शक्तियां हमारे साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं। और जब हम अच्छा कुछ करना चाहते हैं, तब भी अच्छी शक्तियां हमारे साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं। तो श्री कृष्ण कह रहे हैं, अच्छा कर्म करते हुए, देवताओं की अर्चना, प्रार्थना, पूजा से, जो व्यक्ति सीधा मुझ तक न भी पहुंचे वह भी शुभ को उपलब्ध होता है।

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