🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९५ - वस्तु निर्देश । चौताल
निर्मल तत निर्मल तत, निर्मल तत ऐसा ।
निर्गुण निज निधि निरंजन, जैसा है तैसा ॥टेक॥
उतपति आकार नाँहीं, जीव नाँहीं काया ।
काल नाँहीं कर्म नाँहीं, रहिता राम राया ॥१॥
शीत नाँहीं घाम नाँहीं, धूप नाँहीं छाया ।
बाव१ नाँहीं वर्ण नाँहीं, मोह नाँहीं माया ॥२॥
धरणि आकाश अगम, चँद सूर नाँहीं ।
रजनी निशि दिवस नाहीं, पवना नहिं जांहीं ॥३॥
कृत्रिम२ घट कला नाँहीं, सकल रहित सोई ।
दादू निज अगम निगम, दूजा नहिं कोई ॥४॥
इति राम माली गौड़ समाप्त: ॥२॥पद १६॥
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परब्रह्म रूप सत्य वस्तु को बता रहे हैं, हम मन वचन कर्म से कहते हैं, परब्रह्म तत्व ऐसा निर्मल है कि उसकी निर्मल ता कही नहीं जाती । वह निर्गुण है, सँतों की मुख्य निजी निधि है, निरंजन है और जैसा है वैसा ही है । उसके विषय में वह इतना है, ऐसा ही है, यह नहीं कहा जाता ।
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कारण, न उसकी उत्पत्ति है, न आकार है, न प्राण है, न शरीर है । वह विश्व का राजा राम काल - कर्मादि से रहित है ।
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उसमें शीत, उएण, धूप, छाया, वायु१, रँग, मोह, माया, पृथ्वी, आकाश नहीं है ।
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वह मन इन्द्रियातीत होने से अगम है । उस तक चन्द्रमा, सूर्य, अँधेरी रात्रि, चाँदनी रात्रि, दिन और पवनादि नहीं जा सकते ।
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वह माया कृत बनावटी२ शरीर रूप नहीं है, न उसमें कला विभाग है । वह सबसे रहित है । वह वेद से अगम हमारा निज स्वरूप परब्रह्म सत्य है, अन्य कोई भी सत्य नहीं है ।
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका राग माली गौड़ समाप्त: ॥२॥
(क्रमशः)

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