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*दादू सिरजनहार के, केते नाम अनन्त ।*
*चित आवै सो लीजिये, यों साधु सुमरैं संत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
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भक्त हित तत्काल ही, बदल जात यदुनाथ ।
तुलसी विनती मानकर, शीध्र बने रधुनाथ ॥१२६॥
संत तुलसीदास यात्रा करते हुए जब वृन्दावन पहुँचे, तब एक दिन किसी कुंज मे जा निकले, वहां के महन्त गोपालदास था । वह कृष्ण बोलने वालों को अच्छा अन्न देता था । राम बोलने वालों को साधारण देता था । तुलसीदास राम भक्त थे । पंक्ति भेद देख कर उनसे कहा - यह क्या ? उत्तर - यहां ऐसा ही होता है, यदि तुम अपने राम को दिखा दो, तो तुम्हें भी अच्छा अन्न मिलेगा । तुलसीदासजी ने मन्दिर में जाकर प्रार्थना की । यदुनाथ रधुनाथ बन गये, कहा भी है -
"कहा कहूँ छवि आज की, भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक जब नबे, धनुश बाण लो हाथ ॥"
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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