मंगलवार, 26 नवंबर 2019

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*दादू सांई सतगुरु सेविये, भक्ति मुक्ति फल होइ ।*
*अमर अभय पद पाइये, काल न लागै कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *गुरु भक्ति* 
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तत्वा और जीवा नाम के दो भाई थे । उन्होंने अपने घर के द्वार पर एक सूखी लकड़ी गाड कर प्रण कर रखा था कि 'जिसके चरण धोने के जल से यह हरी हो जायेगी उसे ही गुरु बनावेंगे।' कबीरजी के चरण धोवन से वह हरी हो गई और कबीरजी को ही उन्होनें गुरु बना लिया ।
इससे ब्राह्मणों ने यह कह कर कि तुम जुलाहे के शिष्य हो उनसे बेटी लेना और देना बंद कर दिया । उन्होनें यह बात गुरु से कही ।
कबीरजी ने कहा - 'ये लोग भगवत् विमुख हैं, तुम्हारे संबंध के योग्य नही । 'तुम दोनों भाई आपस मे अपने लड़के लड़कियों का संबंध कर लो ।
'जब ये ऐसा करने लगे तब सब ब्राह्मणों ने धबरा कर कहा - 'ऐसा करना उचित नहीं, हम तुम से संबंध कर लेंगे । यह बात उन्होनें फिर गुरुजी को कही ।
गुरु ने कहा - 'यदि वे भगवत् भक्ति स्वीकार करें तो संबंध कर लो ।' भक्ति स्वीकार करने पर तत्वा जीवा ने संबंध कर लिया । 
इससे सूचित होता है कि गुरु आज्ञा मानने से गुरु भक्त की विजय होती है ।
गुरु आज्ञा से होत है, सुगुरु भक्त की जीत ।
तत्वा जीवा की हुई, किया संबंध सप्रित ॥२३२॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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