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*साधू राखै राम को, संसारी माया ।*
*संसारी पल्लव गहै, मूल साधू पाया ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निष्कर्मी पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *निष्कामता*
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संत सुफियान सौरी के पास एक पुरुष दो थाल मुहरें भरकर लाया और बोला - मेरे पिता आपके आपके भक्त थे और शुद्ध व्यवहार करते थे । यह धन शुद्ध वृति से ही कमाया हुआ है । इसे अंगीकार करें ।
सुफियाना सौरी ने वह धन ले लिया, फिर उस पुरुष के जाते ही अपने पुत्र के हाथ वह धन उसी पुरुष के घर भेज दिया और कहला दिया कि मेरे साथ तुम्हारे पिता का प्रेम भगवत्सम्बन्ध से था । अब तुम उसके बीच यह धन का पर्दा क्यों डालते हो ?
पीछे आकर पुत्र ने कहा - हम सब निर्धनता के कारण परम दु:खी हैं, तो भी आपको दया नहीं आती । वह धन हमको दे देते, तो हमारा समय सुख से निकलता । संत तुम्हें तो खान-पान आदि का सुख चाहिये और मुझे परमार्थ साधन करना है, इसलिये मुझसे ऐसा नहीं होगा ।
इससे सूचित होता है कि निष्कामी को कुटुम्ब के लिये लोभ नहीं होता ।
निष्कामी निज कुटुम्बहित, करते नहीं है लोभ ।
एक संत के पुत्र को, हुआ इसी से क्षोभ॥३०१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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