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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू गैब मांहिं गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद ।*
*मस्तक मेरे कर धर्या, दिक्ष्या अगम अगाध ॥*
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साभार ~ Rupa Khant
नवजीवन माने कृतकृत्यता .....
कृतकृत्यता 9 प्रकार से प्राप्त होती है.... ऐसा नवजीवन कि जैसे इसके बाद कुछ शेष नहीं रहता..... ऐसा एक शिखरस्थ नवजीवन...
बाप .....नवजीवन मिलता है किसी बुद्धपुरुष के प्रसाद से..... प्रयास से नहीं .....नवजीवन मतलब मोक्ष नहीं.... मुक्ति नहीं..... नवजीवन मतलब परम तृप्ति ......
सती... पार्वती बनी.... श्रद्धा के रूप में उनकी शादी विश्वास के साथ हुई.... और कैलाश के शिखर पर कथा श्रवण हुआ ......पार्वती बोली ...हे विश्वनाथ आपके प्रसाद से आज मुझे नवजीवन मिला है ......
अर्जुन ने भी स्वीकारा भगवदगीता में कि मेरा जो मोह नष्ट हुआ.... और स्मृति मुझे प्राप्त हुई है ....योगेश्वर वो तेरे प्रसाद से हुआ..... मेरे प्रयास से नहीं.....
हम अपने प्रयास से करने जाते हैं तो मोह नष्ट नहीं होता.... स्थान बदल जाता है.... व्यक्ति बदल जाता है..... विषय बदल जाता है ....लेकिन मोह वैसे का वैसा रहता है.....
वो नष्ट होता है केवल प्रसाद से ......प्रसाद कैसे प्राप्त होता है ?.....
1....स्पर्श से ......किसी का प्रसादिक स्पर्श हो ....तो नवजीवन प्राप्त हो जाए ....बचपन में माँ जब हमारे बालों में अपनी उंगलियों से तेल डालती वो सबसे बड़ी स्पर्श दीक्षा होती थी..... वो जब से बंद हुआ है तब से सब स्मार्ट बहुत हुए.... लेकिन समझदार कम हुए.....
कृष्ण की लटें थी वो यशोदा की उँगलियों का प्रसाद थी.....
इसके बाद साधुचरित शिक्षक की उँगलियां कि .... आ गया विद्यार्थी बेटा .....और सिर पर हाथ फेरे.....
और ऐसा करते करते किसी बुद्धपुरुष की उँगलियां हमको स्पर्श करें.....
2... नजर से.... किसे बुद्धपुरुष की करुणा भरी नजर हमको देखे ....और हमको लगे कि अहाहा....कुबेर अब कंगाल है .....अब इंद्र हमारे सामने कौन है ?.....
ये है दृष्टि दीक्षा ......
तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है ..........
बुद्धपुरूष की आंखें बंद होती है तो लगता है सूरज ढल गया..... और खुले तो लगे कि भगवान भास्कर केसरी रंग की शीतल किरणों को लेकर..... ह्रदय को रंगने मानो कोई सन्यासी बाहर निकला है......
3.... किसी बुद्धपुरुष के विचारों के श्रवण करने से ......उनके वचनों से.....
4.... चिंतन दीक्षा..... बहुत बड़ा प्रसाद है कि बुद्धपुरुष हमारा चिंतन करे.....उसकी स्मृति में हम हो......
बापू के शब्द ~ मानस नवजीवन
जय सियाराम
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