बुधवार, 6 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९४ - तत्व उपदेश । पँचम ताल
बँदे हाजिराँ हजूर वे,अल्लह आली१ नूर२ वे ।
आशिकाँ३ रा४ सिदक५ साबित, तालिबाँ६ भरपूर वे ॥टेक॥
वजूद७ में मौजेद है, पाक८ परवरदिगार९ वे ।
देख ले दीदार को, गैब१० गोता मार वे ॥१॥
मौजेद मालिक तक्षत खालिक११, आशिकाँ रा ऐन१२ वे ।
गुदर१३ कर दिल मग्ज भीतर, अजब है यहु सैंन वे ॥२॥
अर्श१४ ऊपर आप बैठा, दोस्त दाना१५ यार वे ।
खोज कर दिल कब्ज१६ करले, दरूने१७ दीदार वे ॥३॥
हुशियार हाजिर चुस्त१८ करदा१९, मीराँ मेहरवान वे ।
देख ले दर२० हाल२१ दादू, आप है दीवान२२ वे ॥४॥
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सार - तत्व का उपदेश कर रहे हैं, जो प्रेमी३ जिज्ञासु६ भक्त, पूर्ण सत्यता५ पूर्वक भजन द्वारा भगवान् के सम्मुख रहते हैं, उनको४ उस सर्वश्रेष्ठ१ परमात्मा का रूप२ सभी में परिपूर्ण रूप से भासता रहता है । 
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वह विश्व - पालक९ पवित्र८ ईश्वर शरीर७ में विद्यमान है । उन छिपे हुये प्रभु का स्वरूप तू वृत्ति को अन्तर्मुख१० करना रूप गोता मार कर निर्विकल्प समाधि में देख । 
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वे सृष्टि - कर्ता११ प्रभु हृदय - सिंहासन पर विराजमान हैं और प्रेमी भक्तों को यथार्थ१२ रूप से भासते हैं । तू मस्तिक के भीतर जानकर१३ हृदय में देख, यह सँतों का अद्भुत सँकेत है । 
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वे सर्वज्ञ१५, सर्व - सुधद तेरे मित्र प्रभु हृदयाकाश१४ के ऊपर अष्टदल - कमल में विराज रहे हैं । तू अपने मन को अपने अधीन१६ करके हृदय१७ के भीतर, प्रभु का दर्शन कर ले । 
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मन को भजन में सावधान और दृढ़१८ करके१९ दयालु सरदार प्रभु के सम्मुख रखते हुये प्रभु को देख ले । वे हृदय - दरबार२२ में२० प्रति क्षण२१ रहते हैं ।
(क्रमशः)

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