मंगलवार, 26 नवंबर 2019

= *कमला काढ का अंग ९४(५/८)* =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷


🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू साधु गुण गहै, औगुण तजै विकार ।*
*मानसरोवर हंस ज्यूं, छाड़ि नीर, गहि सार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*कमला काढ का अंग ९४*
आकाश१ अवनि२ अरु उदधि३ अष्टकुल४, माया राखी माँहि ।
हुकम५ हिकम६ त्यों कर चढै, नहिं तो लहिये नाँहिं ॥५॥ 
चित्ताकाश१, पृथ्वी२, समुद्र३ और अष्टकुल पर्वतों४ में माया रक्खी है । ज्ञानियों के उपदेश रूप आज्ञा५ से चित्ताकाश की माया निकलती है और नाना प्रकार की विद्या६ओं से पृथ्वी आदि कि माया हाथ लगती है । उक्त उपाय नहीं हो तो माया को प्राप्त नहीं कर सकते । 
जन रज्जब जल जीव में, श्रिया१ सु क्षीर समान । 
विषम वारितैं काढि कर, हंस करै कोउ पान ॥६॥ 
जैसे जल में दूध मिला रहता है, वैसे ही जीव में माया मिल रही है । हंस दूध को जल से अलग करके पान करता है, वैसे ही संत कठिन माया को जीव से निकाल कर जीव को माया रहित कर देते हैं । 
मन तैं माया काढणी, ज्यों ब१ दही तैं घीव । 
जन रज्जब बल बुद्धि उस, महा विवेकी जीव ॥७॥ 
जैसे दही को मथ कर धृत निकाला जाता है, वैसे१ ही विचार द्वारा मन से माया निकाली जाती है उसे महान विवेकी जीव उक्त प्रकार मन से माया को निकालता है, उसका बुद्धि-बल श्रेष्ठ माना जाता है । 
कंचन किरची चुण ले रज में, पारे पूरि विवेक । 
तैसे मनतैं माया काढै, साधू कोई एक ॥८॥ 
जैसे सुनार सुवर्ण के कणों को रज में पारा की गोली डालकर चुन लेता है, वैसे ही विवेक द्वारा कोई विरला संत माया को निकालता है । 
(क्रमशः)

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