#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ५/६ =*
.
*पांवन नाम सदा जपां । चरन कवल चित्त राच ॥*
*पांनि ग्रहण कैसें थपां । चमकि कहैं मुख सांच ॥५॥*
सदा भगवान् का पवित्र नाम जप । अपना ध्यान उसी के पवित्र चरणों में निरन्तर लगाये रख । संसार के धूर्ततापूर्ण व्यवहार से अपने को सदा सुरक्षित रख । तभी तेरे मुख पर सात्त्विक(दिव्य) आभा(चमक) प्रकट होगी(दिखायी देगी) ॥५॥
.
*साध संग ऊंची दसा । तम रज कौ ह्वे पात ॥*
*सार सुधा पावै उसा । तट दरसी कुशलात ॥६॥*
तभी तुम सत्संग द्वारा अपने मन की उच्च(सात्त्विक) स्थिति प्राप्त कर सकोगे । तथा तुम्हारे मन:स्थिति तमोगुण एवं रजोगुण का भी क्षय हो सकेगा । तभी साधारण पुरुष के लिए अप्राप्य अमृतरस भी प्राप्त हो सक्र्गा । इस प्रकार तत्त्वदृष्टा हो जाने के कारण तुम्हें सर्वत्र कुशल(योगक्षेम) प्राप्त होता रहेगा अथवा तुम्हें कुशल(कैवल्य अवस्था) प्राप्त हो जायेगी ॥६॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें