🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९८ - विरह विनती । वर्ण भिन्नताल
दे दर्शन देखन तेरा, तो जिय जक१ पावै मेरा ॥टेक॥
पीव तूँ मेरी वेदन जानै,
हौं६ कहाँ दुराऊं छानै, मेरा तुम देखै मन मानैं ॥१॥
पीव करक२ कलेजे माँहीं,
सो क्यों ही निकसै नाँहीं, पीव पकर हमारी बांहीं ॥२॥
पीव रोम रोम दुख सालै,
इन पीरों पिंजर जालै, जीव जाता क्यों ही बालै३ ॥३॥
पीव सेज अकेली मेरी,
मुझ आरति४ मिलणै तेरी, धन५ दादू वारी फेरी ॥४॥
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९८ - १०१ में विरह पूर्वक दर्शनार्थ विनय कर रहे हैं - प्रभो ! मुझे आपके दर्शन करने दीजिये तब मेरा मन शाँति१ प्राप्त कर सकेगा ।
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स्वामिन् ! आप मेरी व्यथा को तो जानते ही हैं, मैं६ उसे आपसे छिपाऊं तो कहां छिपा सकता हूं ? आप तो सर्वत्र व्यापक हैं । आपको देखने पर ही मेरा मन सन्तोष मानेगा ।
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प्रभो ! मेरे कलेजे में रुक - रुक कर बारम्बार पीड़ा२ हो रही है । वह आपके दर्शन किये बिना किसी प्रकार भी दूर न होगी । अत: प्रभो ! मेरी वृत्ति रूप भुजा पकड़िये ।
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स्वामिन् ! मेरे रोम २ में व्यथा होकर मुझे व्यथित कर रही है । इन रोम २ की पीड़ाओं ने मेरा शरीर - पिंजरा जलाना आरम्भ कर रक्खा है । मेरे प्राण जा रहे हैं, किसी भी प्रकार से रोकिये३ ।
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स्वामिन् ! मेरी हृदय - शय्या आपके बिना खाली पड़ी है; आपसे मिलने के लिये मुझे महान् वियोग - व्यथा४ हो रही है । मैं सखी५ आपकी बलिहारी जाती हूं, दर्शन देने की कृपा करिये ।
(क्रमशः)

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