बुधवार, 11 दिसंबर 2019

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*समता के घर सहज में, दादू दुविध्या नांहि ।* 
*सांई समर्थ सब किया, समझि देख मन मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
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नियमानन्द(निम्बार्काचार्य) के यहां एक दिन एक दण्डी संत आ गये । दोनों में अध्यात्म विचार चलने लगा । समय का कुछ ज्ञान रहा, शाम हो गई । सूर्यास्त होने पर आचार्य ने संत को भोजन के लिये कहा । संत - सूर्यास्त होने पर मैं भोजन नहीं करता । अतिथि भूखे रहेंगे, यह आचार्य को सहन नहीं हुआ और उनकी वेदना बहुत बढ गई । 
भगवान् भी उनके दु:ख को सह न सके । तत्काल ही समीप के निम्ब वृक्ष में नियमानन्दजी को सूर्य दिखाई दिया । उन्होंने अन्य सब के सहित दण्डी को सूर्य के दर्शन कराकर उन्हें भोजन कराया । उसी दिन से उनका नाम निम्बादित्य वा निम्बार्क पड़ गया ।
ईश्वर अपने भक्त की, रखते आये टेक ।
नियमानन्द के नीम में, रवि को लखा अनेक ॥१२१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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