बुधवार, 11 दिसंबर 2019

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*दादू गैब मांहिं गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद ।* 
*मस्तक मेरे कर धर्या, दिक्ष्या अगम अगाध ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *वैराग्य*
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संतवर दादूजी अहमदाबाद के नागर ब्राह्मण लोदीराम को सम्वत् १६०० की फाल्गुन सुदी ८ को प्रात:काल शिशु अवस्था में नदी -प्रवाह में प्राप्त हुये थे । उन्हें लोदीरामजी ने अपना पुत्र मान लिया था, कारण उन्हें इसी प्रकार पुत्र मिलने का एक संत का वर था । बड़े प्रेम से बालक का पालन पोषण किया था । माता-पिता का उन पर भारी प्रेम था ।
११ वर्ष की अवस्था में कांकरिया तालाब पर बालकों के साथ खेलते हुये दादूजी को भगवान् ने वृद्ध ब्राह्मण के वेष में दर्शन तथा उपदेश दिया, उससे दादूजी के हृदय में वैराग्य प्रकट हुआ । वे अपने परम स्नेही माता-पिता धन-धाम आदि को तृण के समान जानकर तथा त्याग करके राजस्थान में आकर साधना करने लगे, इससे ज्ञात होता है कि वैराग्य प्रकट होने पर मोह नहीं रहता ।
प्रकट होत वैराग्य के, मोह रहे नहिं लेश ।
स्वजन धाम धन त्यागकर, दादू गये विदेश॥१८४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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