मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

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*सतगुरु की समझै नहीं, अपणै उपजै नांहि ।* 
*तो दादू क्या कीजिए, बुरी बिथा मन मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
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एक गुरु अपने शिष्य को सदा कहा कहते थे कि ईश्वर को सर्व रूप जानना । एक दिन शिष्य कहीं जा रहा था और उसके सामने से हाथी आ रहा था । महावत ने आवाज दी - हाथी मस्ती में है, दूर हट जाओ । शिष्य के मन में विचार हुआ जब भगवान् सर्वरूप है तब मैं क्यों हटूं ? हाथी भी भगवान् मैं भी भगवान् । भगवान् को भगवान से क्या हानि हो सकती है ? नहीं हटा । समीप में आते ही हाथी ने जोर से सूँड मारी । वह दूर जा गिरा, बहुत चोट आई । 
इससे गुरुजी के उपदेश में उसे परम निर्वेद(महान् ग्लानि) हुआ । गुरुजी से कहा - ईश्वर को सर्वरूप मानने से मुझे यह फल मिला । गुरुजी ने कहा - तूने ईश्वर को सर्वरूप नहीं माना, यदि मानता तो यह खेद नहीं करता । जैसे हाथी और तू ईश्वर स्वरूप था, वैसे ही महावत भी तो ईश्वर स्वरुप था । उसकी बात क्यों नहीं मानी ? यदि मान कर दूर हट जाता तो तुझे यह खेद नहीं होता । ईश्वर की सर्वरूपता के मानने में कमी का ही यह फल होता है । इससे सूचित होता है कि ईश्वर की सर्वरूपता के मानने की कमी से क्लेश ही होता है ।
सर्वरूप हरि लखन में, कमी रहे से खेद ।
करिकर की खा चोट को, हुआ परम निर्वेद ॥६४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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