सोमवार, 9 दिसंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१२२ - विनती । मल्लिकामोद ताल
पिवजी सेती नेह नवेला, 
अति मीठा मोहि भावै रे ।
निशदिन देखूँ बाट तुम्हारी, 
कब मेरे घर आवै रे ॥टेक॥
आइ बनी है, साहिब सेती, 
तिस बिन तिल क्यों जावै रे ।
दासी को दर्शन हरि दीजै, 
अब क्यों आप छिपावे रे ॥१॥
तिल तिल देखूँ साहिब मेरा, 
त्यों त्यों आनंद अँग न मावे रे ।
दादू ऊपर दया(मया) करि, 
कब, नैनहुँ नैन मिलावै रे ॥२॥
१२२ - १२३ में दर्शनार्थ प्रभु से विनय कर रहे हैं - प्रभुजी से मेरा प्रेम नित्य नूतन बढ़ता जा रहा है, वे मुझे अति मधुर और प्रिय लगते हैं । हे प्रभो ! मैं रात्रि दिन आपका मार्ग देख रही हूं और विचार कर रही हूं - प्रभु मेरे हृदय घर में कब पधारेंगे ? 
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अब तो प्रभु के साथ ऐसी प्रीति हो गई है कि उनके बिना एक क्षण भी कैसे व्यतीत होगा ? हे हरे ! दासी को दर्शन दो, अब अपने को क्यों छिपा रहे हो ? 
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ज्यों २ मैं अपने स्वामी को प्रति क्षण देखूँगी, त्यों २ ही दर्शनानन्द मेरे अन्त:करण में नहीं समा सकेगा । वे प्रभु मुझ पर दया करके कब मेरे नेत्रों से अपने नेत्र मिलायेंगे ?
(क्रमशः)

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