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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (७. कविता लक्षण. ५) =*
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*सम मिंत साधारण समभृत्य तैं बिपत्ति,*
*सम द्वै निफल सम रिपु ब्रुद्ध होइ जू ।*
*अरि मिंत शून्य फल शत्रु दास त्रियनाश,*
*रिपु सम मिलत हि हारि होत सोइ जू ॥*
*अरि दोइ मिलै तहां प्रभु कौं हरत वह,*
*सुगण बिचारि धरि असुभ न षोइ जू ।*
*ह झ ध र घ न ष भ दग्ध अक्षर पाठ,*
*सुन्दर कहत छंद आदि देन जोइ जू ॥(५)॥*
दो मित्रों के मिलने पर साधारण लाभ, दो समान भृत्यों के मिलने पर विपत्ति । दो सम के मिलने पर असफलता और दो शत्रुगण मिलने पर वृद्धि होती है । शत्रु एवं मित्र के मिलने पर फल में शून्यता, शत्रु एवं दास के मिलने पर स्त्री का नाश, दो शत्रु मिलने पर पराजय निश्चित समझिये ।
दो शत्रु मिलने पर स्वामी की पराजय होती है । ऐसे, शकुनों पर विचार कर कार्य करने वाले को कभी पराजय का मुख नहीं देखना पड़ता है । महात्मा कहते हैं – ह, झ, ध, र, घ, न, ष, भ – इन आठ दग्ध अक्षरों को कविता के आदि में कभी प्रयुक्त नहीं करना चाहिये ॥५॥
(क्रमशः)

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