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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*स्मरण लाम्बी रस*
*सुमिरण का शंसा रह्या, पछितावा मन मांहि ।*
*दादू मीठा राम रस, सगला पिया नांहि ॥११६॥*
यह नामामृत मधुर से भी मधुर एवं मंगलों का भी मंगल करने वाला है, तथापि यह मुझ से पूरा नहीं पीया गया-इसी का मुझे दुःख है । इसी से मैं सन्तप्त हूँ । अर्थात् दिनरात स्मरण करने पर भी मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई । यही प्रेमा भक्ति का लक्षण है । उसको जब भी नामविस्मरण होता है उसका चित्त व्याकुल हो जाता है ॥११६॥
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*दादू जैसा नाम था, तैसा लीया नांहि ।*
*हौंस रही यहु जीव में, पछितावा मन मांहि ॥११७॥*
शास्त्रों में जैसी नामस्मरण की महिमा पढी-सुनी है वैसी नाम साधना चित्त की एकाग्रता के अभाव में नहीं बनी । पूर्ण इच्छा होने पर भी नाम-साधना जैसी होनी चाहिये थी वैसी न होने से मेरे मन में पश्चात्ताप ही रह गया ॥११७॥
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*स्मरण नाम चितावणी*
*दादू सिर करवत बहै, बिसरे आत्म राम ।*
*मांहि कलेजा काटिये, जीव नहीं विश्राम ॥११८॥*
*दादू सिर करवत बहै, राम हिरदै थैं जाइ ।*
*माँहि कलेजा काटिये, काल दसों दिसी खाइ ॥११९॥*
*दादू सिर करवत बहै, अंग परस नहीं होइ ।*
*मांहि कलेजा काटिये, यहु बिथा न जाणै कोइ ॥१२०॥*
*दादू सिर करवत बहै, नैनहूँ निरखै नांहि ।*
*मांहि कलेजा काटिये, साल रह्या मन मांहि ॥१२१॥*
भक्त को भगवन्नामविस्मृति में शस्त्र से सिर कटने जैसी पीड़ा होती है । कहीं भी शान्ति नहीं मिलती । चिन्ताओं से हृदय फटता रहता है । सर्व दिशाओं में ऐसा अनुभव होता है कि मानो काल ने पकड़ लिया है । भगवद्दर्शन तो होता नहीं, प्रत्युत पूर्वानुभूत भोगवासनाओं से हृदय जलने लगता है । प्रतिदिन आयु घटती जाती है, क्रोध लोभादि से हृदय दग्ध होता रहता है । फिर भी, मूढ भगवान् को स्मरण नहीं करते । चित्त की व्यथा कथा की क्या कहें, कही नहीं जाती !
(क्रमशः)
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