शनिवार, 7 दिसंबर 2019

स्मरण का अंग ११६/१२१

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
.
*स्मरण लाम्बी रस* 
*सुमिरण का शंसा रह्या, पछितावा मन मांहि ।* 
*दादू मीठा राम रस, सगला पिया नांहि ॥११६॥* 
यह नामामृत मधुर से भी मधुर एवं मंगलों का भी मंगल करने वाला है, तथापि यह मुझ से पूरा नहीं पीया गया-इसी का मुझे दुःख है । इसी से मैं सन्तप्त हूँ । अर्थात् दिनरात स्मरण करने पर भी मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई । यही प्रेमा भक्ति का लक्षण है । उसको जब भी नामविस्मरण होता है उसका चित्त व्याकुल हो जाता है ॥११६॥ 
*दादू जैसा नाम था, तैसा लीया नांहि ।* 
*हौंस रही यहु जीव में, पछितावा मन मांहि ॥११७॥* 
शास्त्रों में जैसी नामस्मरण की महिमा पढी-सुनी है वैसी नाम साधना चित्त की एकाग्रता के अभाव में नहीं बनी । पूर्ण इच्छा होने पर भी नाम-साधना जैसी होनी चाहिये थी वैसी न होने से मेरे मन में पश्चात्ताप ही रह गया ॥११७॥ 
*स्मरण नाम चितावणी* 
*दादू सिर करवत बहै, बिसरे आत्म राम ।* 
*मांहि कलेजा काटिये, जीव नहीं विश्राम ॥११८॥* 
*दादू सिर करवत बहै, राम हिरदै थैं जाइ ।* 
*माँहि कलेजा काटिये, काल दसों दिसी खाइ ॥११९॥* 
*दादू सिर करवत बहै, अंग परस नहीं होइ ।* 
*मांहि कलेजा काटिये, यहु बिथा न जाणै कोइ ॥१२०॥* 
*दादू सिर करवत बहै, नैनहूँ निरखै नांहि ।* 
*मांहि कलेजा काटिये, साल रह्या मन मांहि ॥१२१॥* 
भक्त को भगवन्नामविस्मृति में शस्त्र से सिर कटने जैसी पीड़ा होती है । कहीं भी शान्ति नहीं मिलती । चिन्ताओं से हृदय फटता रहता है । सर्व दिशाओं में ऐसा अनुभव होता है कि मानो काल ने पकड़ लिया है । भगवद्दर्शन तो होता नहीं, प्रत्युत पूर्वानुभूत भोगवासनाओं से हृदय जलने लगता है । प्रतिदिन आयु घटती जाती है, क्रोध लोभादि से हृदय दग्ध होता रहता है । फिर भी, मूढ भगवान् को स्मरण नहीं करते । चित्त की व्यथा कथा की क्या कहें, कही नहीं जाती ! 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें