शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

= *सुकृत का अंग ९५(२१/२४)* =

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू दीये का गुण तेल है, दीया मोटी बात ।*
*दीया जग में चाँदणां, दीया चालै साथ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*सुकृत का अंग ९५*
सुकृत सुत जीवै सदा, द्वै उपकार सहेत । 
पिता सुयश राखै यहाँ, उहाँ१ सु रुचि फल देत ॥२१॥ 
सुकृत रूप पुत्र दो उपकारों के सहित सदा जीवित रहता है, इस लोक में अपने करने वाले पिता का सुयश रखता है और वहाँ१ परलोक में रुचि अनुसार फल देता है । 
पुण्य पारस है कल्पतरु, कामधेनु धर्म धन्न१ । 
रज्जब पलट२ हि प्राणपति, माँग्या मिले जु मन्न३ ॥२२॥ 
पुण्य पारस तथा कल्पतरु रूप है, धर्म रूप धन१ कामधेनु रूप है । पुण्य ईश्वर को अनुकूल२ कर देता है, फिर ईश्वर से जो मन३ में इच्छा हो वही माँगने से मिल जाता है । 
सांई सुकृत सन्मुखा, साधु वेद की साखि । 
सत संतोष जु प्राणपति, सती पुरुष उर राखि ॥२३॥ 
ईश्वर सुकृत करने वाले के सम्मुख ही रहते हैं, ऐसे ही संत तथा वेद की साक्षी है, अत: सत्य, सन्तोष, ईश्वर और सत्य को धारण करने वाले सती पुरुषों को हृदय में रख । 
सोच१ रहित सुकृत कर हिं, सो सुख लहैं अचिंत्य२ । 
रज्जब माया ब्रह्म की, फलैं कामना मत्य३ ॥२४॥ 
जो सब प्रकार की चिन्ता१ को त्यागकर सुकृत करता है, वह कल्पनातीत२ सुख को प्राप्त करता है । सुकृत से माया वा ब्रह्म सम्बन्धी जो भी कामना बुद्धि३ में होती है, वही फलीभूत हो जाती है । 
(क्रमशः)

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