शनिवार, 7 दिसंबर 2019

= *सुकृत का अंग ९५(२५/२८)* =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर कर, सब साधों की साखि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*सुकृत का अंग ९५*
सुकृत सुख सुस्त्रवै१ सदा, कुकृत दुख दातार । 
अब आगे आतमकने२, कदे न छाड़ै लार३ ॥२५॥ 
सुकृत सदा सुख ही देता१ है और कुकृत दुख देता है, सुकृत - कुकृत अब और आगे भी आत्मा के साथ२ ही रहते हैं कभी भी साथ३ नहीं छोड़ते । 
फिरि१ आवे तो खैर२ खजाना, प्रभु कन३ रहत पुण्य उपकार । 
संकट में सुकृत सगा, मित्र स्नेही दोस्त यार ॥२६॥ 
सुकृत२ का फल लौट१ कर मिलता है तो धन३ का कोश प्राप्त होता है और पुण्य प्रभु के पास३ रहता है तो भी उपकार ही होता है । दुख के समय सुकृत ही सम्बन्धी, मित्र, स्नेही, दोस्त यार होता है, अन्य सब छोड़ देते हैं । 
हरिश्चन्द्र हेरि गहिये धरम, मनन डुलाओ कोय । 
रज्जब रहतों सत्य कै, शक्ति सकल फिरि होय ॥२७॥ 
सती हरिश्चन्द्र की धर्म-दृढता और उसके परिणाम को देखकर सत्य-धर्म से मन को कोई भी न डुलावें, सत्य धर्म के रहने से माया तो सभी पुन: वैसी ही हो जायगी । 
अहुंठे१ हाथ हरि हेत दे, तो पाये उणचास । 
जन रज्जब जीव की फलै, सांई दासों दास ॥२८॥ 
साढे तीन१ हाथ शरीर को हरि के लिये समर्पण कर देता है तो उसे उनचास कोटि पृथ्वी मिल जाती है अर्थात प्रभु प्राप्ति पर प्रभु का सब कुछ भक्त का हो जाता है । जीव की आशा फलीभूत हो जाती है, प्रभु तो दासों के दास हैं ही । 
(क्रमशः)

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