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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१२० - स्तुति । गजताल
अरे मेरे समर्थ साहिब रे अल्लह,
नूर तुम्हारा ॥टेक॥
सब दिशि देवै, सब दिशि लेवै,
सब दिशि वार न पार, रे अल्लह ॥१॥
सब दिशि कर्ता, सब दिशि हर्ता,
सब दिशि तारणहार, रे अल्लह ॥२॥
सब दिशि वक्ता, सब दिशि श्रोता,
सब दिशि देखणहार, रे अल्लह ॥३॥
तू है तैसा कहिये ऐसा,
दादू आनन्द होइ, रे अल्लह ॥४॥
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परमेश्वर की स्तुति कर रहे हैं - हे मेरे समर्थ स्वामिन् ! परमेश्वर ! आपका स्वरूप ही मेरा आधार है ।
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आप सब दिशाओं में सबको अन्नादि देते हैं और भक्तों की भेंट लेते हैं । आप सब दिशाओं में परिपूर्ण हैं आपका वार - पार नहीं है ।
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सब दिशाओं में आप करने योग्य कार्य करते हैं, दुष्टों के प्राण हरते हैं, सज्जनों की रक्षा करते हैं ।
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सब दिशाओं में ही आप, अपने भक्तों को अपने वचन सुनाते हैं और उनकी प्रार्थना सुनते हैं । आप सभी दिशाओं में सब कुछ देखते हैं ।
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प्रभो ! वास्तव में आप जैसे हैं, वैसा ही अपना स्वरूप कह कर हमको समझाइये, ठीक समझने पर हमें परमानन्द प्राप्त होगा ।
(क्रमशः)

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