गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

= ११८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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११८ - विरह विनती । उत्सव ताल
अरे मेरे सदा संगाती रे राम, कारण तेरे ॥टेक॥
कंथा पहरूँ, भस्म लगाऊं, 
वैरागिनि ह्वै ढूंढूं, रे राम ॥१॥
गिरिवर वासा, रहूं उदासा, 
चढ शिर मेरु पुकारूँ, रे राम ॥२॥
यहु तन जालूँ, यहु मन गालूँ, 
करवत शीश चढाऊं, रे राम ॥३॥
शीश उतारूँ, तुम पर वारूँ, 
दादू बलि बलि जाऊं, रे राम ॥४॥
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११८ - ११९ में विरह पूर्वक विनय कर रहे हैं - हे मेरे सदा साथ रहने वाले राम ! मैं आपके साक्षात्कारार्थ, 
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यदि आपको रुचिकर हो तो, गुदड़ी पहन सकता हूं, भस्म लगा सकता हूं, इस प्रकार विरक्त होकर आपको खोज सकता हूं । 
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सबसे उपराम होकर विशाल पर्वत पर रह सकता हूं, सुमेरु पर्वत पर चढ़कर पुकार २ कर आपसे प्रार्थना कर सकता हूं, 
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यह शरीर अग्नि में जला सकता हूं, हिमालय में गला सकता हूं, शिर पर करवत चढ़ाकर शरीर को चीर सकता हूं, 
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शिर को काट कर आप पर निछावर कर सकता हूं । हे राम ! मैं बारम्बार आपकी बलिहारी जाता हूं । कहिये, आपको क्या प्रिय है ? वही मैं करूँगा ।
(क्रमशः)

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