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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*दादू राम बिसार कर, जीवैं किहिं आधार ।*
*ज्यूं चातक जल बूँद को, करै पुकार पुकार ॥१००॥*
*हम जीवैं इहि आसरे, सुमिरण के आधार ।*
*दादू छिटके हाथ थैं, तो हमको वार न पार ॥१०१॥*
नाम एवं नामी का अभेद होने से जन भक्त राम का नाम उच्चारण करते हैं तब भक्त का राम के साथ संयोग होने से भक्त आनन्दस्वरूप हो जाते हैं; क्योंकि राम स्वयं आनन्दरूप है । लिखा है-
चातक पक्षी की तरह वह हरि से प्रार्थना करता रहता है- “हे हरे ! मुझे दर्शनरूपी जल पिलाओ, अन्यथा मैं मर जाऊंगा, क्योंकि भक्त का जीवन भगवदाराधन के लिये ही होता है । अतः प्रभो ! मुझे कभी भी मत छोड़ो अन्यथा मेरा आधार न रहने से पतन हो जायेगा ।”
आनन्दस्वरूप भगवान् मुरारि के नाम की जय हो, जय हो ! क्योंकि नाम जपने वाले साधक को स्वधर्म के पालन का ध्यान-पूजा आदि का कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता । यदि कोई एक बार भी किसी भी तरह भगवन्नाम का स्मरण कर ले तो वह मुक्त हो जाता है । भगवान् का नाम प्राणियों को मुक्तिदाता है । और वह भक्तों का जीवन एवं भूषण रूप है ॥९८-१०१॥
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*पतिव्रत निष्काम स्मरण*
*दादू नाम निमित रामहि भजै, भक्ति निमित भजि सोइ ।*
*सेवा निमित सांई भजै, सदा सजीवन होइ ॥१०२॥*
राम नाम जपने वाले को निष्काम भाव से नाम जप करना चाहिये । तभी प्रेमरस की उत्पत्ति हो सकती है । ऐसे भक्ति भी भक्ति के निमित्त ही करनी चाहिये, सेवा भी सेवाभाव के लिये ही करनी चाहिये, किसी फल के लिये नहीं ।
ऐसा करने पर ही जीवन्मुक्त दशा में आनन्द प्राप्त किया जा सकता है । गीता में लिखा है-
“जैसे चारों तरफ से परिपूर्ण, अचल, प्रतिष्ठा वाले समुद्र के प्रति नाना नदियों के जल उसे यत्किंचित् भी चलायमान न करते हुए उसी में समा जाते हैं, वैसे ही स्थिर बुद्धि के प्रति सम्पूर्ण भोग किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये विना ही समा जाते हैं । वह पुरुष परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है । न कि भोगों को चाहने वाला ॥”
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममता रहित और अहंकार एवं स्पृहा से रहित होकर व्यवहार करता है, वह शान्ति प्राप्त कर लेता है ।
भागवत में भी कहा है-
“हे कमलनयन ! भक्त जिस समय अपने में रहने वाली कामनाओं को त्याग देता है उसी समय वह भगवत्स्वरूप को प्राप्त कर लेता है ।”
“हे वर देने वालों में श्रेष्ठ भगवन् ! यदि आप मुझे कोई वर देना ही चाहते है तो यही वर दीजिये कि मेरे हृदय में किसी कामना का बीज न उगे ॥१०२॥”
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*नाम सम्पूर्णता*
*दादू राम रसाइन नित चवै, हरि है हीरा साथ ।*
*सो धन मेरे साइयां, अलख खजाना हाथ ॥१०३॥*
“आपके पास कितना धन है?”-किसी के द्वारा ऐसा पूछे जाने पर, श्रीदादूजी महाराज ने उत्तर दिया- मेरे पास रामनाम स्मरण ही रसायन है, हीरों के समान कान्तिमय हरिस्मरण ही मेरा धन है । और जिस ब्रह्म को कोई नहीं जानता, उसका ज्ञान ही मेरा खजाना(कोष) है । फिर तुच्छ सांसारिक धन की मुझे क्या अपेक्षा है ! विष्णु पुराण में भक्त प्रह्लाद ने कहा है-
“हे राक्षसों ! इस असार संसार में भ्रमण करते हुए कहीं भी सन्तोष न करना- यह मैं तुम लोगों को समझा रहा हूँ । किन्तु हे दैत्यो ! समता को प्राप्त करो, क्योंकि यह समत्व ही भगवदाराधन है ।”
उस भगवान् के प्रसन्न होने पर धर्म अर्थ काम मोक्ष इनमें से कौन सा पदार्थ जो अलभ्य(अप्राप्य) रह जाय । ब्रह्म रूपी वृक्ष का आश्रय लेकर तूं निःसन्देह मोक्षरूपी फल प्राप्त कर लोगे ॥१०३॥”
(क्रमशः)

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