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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (७. कविता लक्षण. २६) =*
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*छप्पय*
*माधोजी है मगण यहै है यगण कहिज्जै ।*
*रगण रामजी होइ सगण सगलै सु लहिज्जै ॥*
*तगण कहै तारक जरांत सु जगण कहावै ।*
*भूधर भणिये भगण नगण सुनि निगम बतावै ॥*
*हरि नाम सहित जे उच्चरहिं, तिनकौ सुभगण अठ्ठ हैं ।*
*यह भेद जके जानै नहीं, सुन्दर ते नर सठ्ठ हैं ॥२६॥*
[ उत्तम काव्य में गणों की शुभता अशुभता पर भी विचार किया जाता है । अतः महाकवि गणों का वर्णन आरम्भ कर रहे हैं - ]
तीन अक्षरों का गण होता है । गण आठ होते हैं ।
वे ये हैं – १.मगण, २.यगण, ३.रगण, ४.सगण, ५.तगण, ६.जगण, ७.भगण एवं ८.नगण । शास्त्र में ये आठ गण कहे गए हैं ।
हृस्व(लघु) एवं दीर्घ अक्षरों के क्रम से इनकी पहचान होती । जैसे –
मगण = तीनों दीर्घ अक्षर ।
यगण = आदि लघु तथा दो दीर्घ अक्षर ।
रगण = मध्य का लघु अक्षर ।
सगण = तीनों लघु अक्षर ।
तगण = दो दीर्घ अन्त का लघु अक्षर ।
जगण = आदि तथा अन्त का लघु मध्य का दीर्घ ।
भगण = आदि का दीर्घ अक्षर तथा दो लघु ।
नगण = तीनों लघु अक्षर ।
‘महात्मा’ कहते हैं – जो वाचक इन गणों का उच्चारण ‘हरि’ नाम के साथ करते हैं उनके लिये ये सभी आठों गण सदा ही शुभ हैं । इनका यह सूक्ष्म भेद जो नहीं जानता, वह इस शास्त्र में मुर्ख ही कहा जायगा ॥२६॥
(क्रमशः)
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