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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (८.संख्या बर्णन. ७) =*
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*गनपति रदन मही दिनेशचक्ररथ,*
*चन्द शुकनेत्र एक आतमा ही जानिले ।*
*गजदंत अयन नयन कर पाद पक्ष,*
*नदी तट नागजिव्हा द्विज दोइ मांनिले ॥*
*राम हरनयन अगनि क्रम बलि संख्या,*
*काल ताप जुर सूल पद्म तीन आंनिले ।*
*षांनि बांनी बरन आश्रम अजमुख बेद,*
*कूट जुग सेना मुक्तिफल च्यारि पानिले ॥७॥*
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*संख्यावाचक शब्दों का व्याख्यान*
काव्य में कहीं कहीं कुछ विशिष्ट शब्दों से भी संख्याओं का बोध कराया जाता है ।
उनमें एकवाचक संख्याशब्द ये हैं – १.गणेश का एक दाँत, २.पृथ्वी, ३.सूर्य के रथ का एक पहिया(चक्र), ४.चन्द्रमा, ५.शुक्राचार्य का नेत्र तथा ६.एक आत्मा ।
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द्विवाचक संख्या शब्द ये हैं –
१.हाथी के दाँत,
२.अयन-उत्तरायण एवं दक्षिणायन ।
दो पाद(चरन) । दो हाथ ।
दो पक्ष – कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष ।
दो तट (नदी आदि के) ।
सर्प की दो जिव्हा ।
द्विज: दो बार जन्म लेने वाला(ब्राह्मण या दाँत आदि) ।
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त्रिवाचक संख्या शब्द ये हैं –
तीन राम = (रामचन्द्र, परशुराम एवं बलराम) ।
३.भगवान् शिव के = तीन नेत्र ।
तीन अग्नि = वाडवाग्नि, दावाग्नि एवं जाठराग्नि) ।
३. क्रम, विक्रम, बल = (तन, मन एवं धन)
तीन बालि = (कण्ठ की तीन बलि-रेखाएँ) ।
तीन सन्ध्या = प्रात:, मध्यान्ह एवं सायं ।
तीन काल(भूतकाल, भविष्यत्काल एवं वर्तमान काल) ।
तीन ताप = (शारीरिक, मानसिक एवं दैविक) ।
तीन ज्वर = (वात ज्वर, पित्तज्वर एवं कफज्वर) तीन शूल(भगवान् शंकर का त्रिशूल प्रसिद्ध है ।)
तीन पद्म(निधि) = (वेद निधि, लोकनिधि एवं कुल निधि) ।
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चतुर्वाचक संख्या शब्द ये हैं – षांनि(योनि) चार हैं उनसे उत्पन्न होने वाली प्राणी भी चतुर्विध हैं,
जैसे = जरायुज, अंडज, स्वेदज एवं उद्भिज्ज
चार वाणी = १.परा, २.पश्यन्ति, ३.मध्यमा एवं ४.वैखरी ।
चार वर्ण = ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र ।
चार आश्रम = ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास ।
अजमुख = ब्रह्माजी के चार मुख ।
चार वेद = ॠगवेद, यजुवेद, सामवेद, अथर्ववेद ।
चार कूटस्थ आत्मा सम्बन्धी = जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति, कूटस्थ ।
(तुरिया) की चार नीतियाँ = साम, दाम, दण्ड, भेद ।
अथवा विष्णु चतुर्भुज हैं = उनकी चार भुजा ।
कूट(कोना) = चार कोने ।
जुग-युग चार है = सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग ।
सेना चतुरंगिनी = हाथी, घोड़े, रथ, पैदल ।
चार भूमि = सालोक्य सारुप्य, सामीप्य, सायुज्य ।
फल = चतुष्फल ।
चतुवर्ज = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।
पानि ले = हाथ मेले, ग्रहण कर ।
(क्रमशः)

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