रविवार, 1 दिसंबर 2019

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*सब काहू के होत हैं, तन मन पसरैं जाइ ।*
*ऐसा कोई एक है, उलटा मांहिं समाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *उदारता* 
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एक संत जाजरू में गये हुये थे, उसी समय एक याचक ने आकर के कहा कि - मुझे कुछ दो । संत ने वहां ही तुरन्त अपने शरीर का वस्त्र उतार करके अपने सेवक के शरीर पर फेंक करके कहा - यह इसे दे दो । बाहर आने पर सेवक ने पूछा - आपने वस्त्र देने में इतनी शीध्रता क्यों की ? बाहर आने पर ही दे देते । संत - मुझे भय था कि अभी तो मन में देने का संकल्प है और पीछे बदल गया तो बड़ा अनर्थ होगा ।
देने में देर न करें, होते जो सु-उदार ।
शौचालय से संत ने, तन पट दिया उतार ॥१७५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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