बुधवार, 11 दिसंबर 2019

= १२४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
१२४ - विरह विनती । राजमृगाँक ताल
कब मिलसी पीव ग्रह१ छाती, 
हूं औरां संग मिलाती ॥टेक॥
तिसज लागी तिसही केरी, 
जन्म जन्म नो साथी ।
मीत हमारा आव पियारा, 
ताहरा रँग नी राती ॥१॥
पीव बिना मने नीँद न आये, 
गुण ताहरा लै गाती ।
दादू ऊपर दया मया किर, 
ताहरे वारणे जाती ॥२॥
.
विरह - पूर्वक विनय कर रहे हैं - मेरे प्रभु, मेरे हृदय - घर में आकर मेरी वृत्ति रूप छाती ग्रहण१ कर अपने स्वरूप - छाती से कब मिलायेंगे ? 
.
आपके बिना मैं अपनी वृत्ति - छाती अन्य रागियों के साथ मिलाती हूं किन्तु मुझे तो जो मेरे जन्म २ के साथी प्रभु हैं, उन्हीं के दर्शनों की इच्छा है । हे हमारे प्यारे मित्र ! मेरे हृदय में पधारिये, मैं आपके ही प्रेमरँग में रँगी हूं । 
.
प्रियतम ! आपके बिना मुझे निद्रा भी नहीं आती । मैं अपनी वृत्ति लगा कर आपके ही गुण गाती रहती हूं । मुझ पर प्रेमपूर्वक दर्शन देने की दया करिये, मैं आपकी बलिहारी जाती हूं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें