सोमवार, 2 दिसंबर 2019

= १९७ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सुख मांहि दुख बहुत हैं, दुख मांही सुख होइ ।*
*दादू देख विचार कर, आदि अंत फल दोइ ॥*
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साभार ~ Soni Manoj

*# दुख है, तो जानो, जागो, पहचानो #*
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दुखों से भागो मत । दुखों को जीयो । दुखों से होशपूर्वक गुजरो । और तुम पाओगे : हर दुख तुम्हें मजबूत कर गया । हर दुख तुम्हारी जडो़ं को बडा़ कर गया । हर दुख तुम्हें नया प्राण दे गया । हर दुख तुम्हें फौलाद बना गया ।
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दुख का कुछ कारण है । दुख व्यर्थ नहीं है । दुख की सार्थकता यही है कि दुख के बिना कोई आदमी आत्मवान नहीं हो पाता । पोच रह जाता है, पोचा रह जाता है ।
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इसलिए अक्सर जिनको सुख और सुविधा में ही रहने का मौका मिला है, उनमें तुम एक तरह की पोचता पाओगे । एक तरह का छिछलापन पाओगे । सुखी आदमी में, तथाकथित सुखी आदमी में गहराई नहीं होती । उसके भीतर कोई आत्मा नहीं होती ।
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इसलिए तुम अक्सर धनी घरों में मूढ़ व्यक्तियों को पैदा होते पाओगे । धनी घर के बच्चे बुध्दू रह जाते हैं । सब सुख - सुविधा है; करना क्या है ! सब वैसे ही मिला है; पाना क्या है ?
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संघर्ष नहीं, तो संकल्प नहीं । और संकल्प नहीं, तो आत्मा कहां ? और संकल्प नहीं, तो समर्पण कैसे होगा । जब कमाओगे संकल्प को, जब तुम्हारा मैं प्रगाढ़ होगा, तभी किसी दिन उसे झुकाने का मजा भी आएगा । नहीं तो क्या खाक मजा आएगा !
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जिसके पास अहंकार नहीं है, वह निरअहंकारी नहीं हो सकता । इस बात को खूब समझ लेना । जिसके पास गहन अहंकार है वही निरअहंकारी हो सकता है । निरअहंकारिता अहंकार की आखिरी पराकाष्ठा के बाद घटती है ।
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लेकिन दुख से आदमी डरता है । दुख से तुम्हारा परिचय है । तुम जानते हो दुखों को । दुखों से तुम्हारी खूब पहचान है । दुखों से ही पहचान है । सुख की तो सिर्फ आशा रही, सपना रहा है । दुखों से मिलना हुआ है । तो स्वाभाविक है कि तुम दुख से डरते हो ।
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सभी दुख से डरते हैं । और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे । क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे । और दुख मिटता है समझने से । दुख मिटता है जागने से । दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से ।
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इसलिए तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किए रहते हैं; तो दुख का निदान नहीं हो पाता । दुख पर अंगुली रखकर नहीं देखते कि कहां है ! क्या है ! क्यों है ! दुख में उतरकर नहीं देखते कि कैसे पैदा हो रहा है ! किस कारण हो रहा है ! भय के कारण अपने ही दुख से भागे रहते हैं ।
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तुम कहीं भी भागो, दुख से कैसे भाग पाओगे । दुख तुम्हारे जीवन की शैली में है । तुम जहां जाओगे, वहीं पहुंच जाएगा । जिनसे तुम डरते हो, अगर उनसे भागोगे, तो यही होगा । दुख से डरे कि दुखी रहोगे । दुख से डरे कि नर्क में पहुंच जाओगे; नर्क बना लोगे । दुख से डरने की जरूरत नहीं है । दुख है, तो जानो, जागो, पहचानो ।
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जिन्होंने भी दुख के साथ दोस्ती बनायी और दुख को ठीक से आंख भरकर देखा, दुख का साक्षात्कार किया, वे अपूर्व संपदा के मालिक हो गये । कई बातें उनको समझ में आयीं ।
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एक बात तो यह समझ में आयी कि दुख बाहर से नहीं आता । दुख मैं पैदा करता हूं । और जब मैं पैदा करता हूं, तो अपने हाथ की बात हो गयी । न करना हो पैदा, तो न करो, करना हो, तो कुशलता से करो । जितना करना हो, उतना करो । मगर फिर रोने - पछताने का कोई सवाल न रहा ।
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जिन्होंने दुख को गौर से देखा, उन्हें यह बात समझ में आ गयी कि यह मेरे ही गलत जीने का परिणाम है । यह मेरा कर्म - फल है । जैसे एक आदमी दीवाल से निकलने की कोशिश करे । उसके सिर में टक्कर लगे । और लहूलुहान हो जाए । और कहे कि यह दीवाल मुझे बडा़ दुख दे रही है ।
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तुम दुख के कारण नहीं देखते । दुख के कारण, सदा तुम्हारे भीतर हैं । दुख बाहर से नहीं आता । और नर्क पाताल में नहीं है । नर्क तुम्हारे ही अचेतन मन में है । वही है पाताल । और स्वर्ग कहीं आकाश में नहीं है । तुम अपने अचेतन मन को साफ कर लो कूडे़ - करकट से, वहीं स्वर्ग निर्मित हो जाता है । स्वर्ग और नर्क तुम्हारी ही भाव - दशाएं हैं । और तुम ही निर्माता हो । तुम ही मालिक हो ।
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तो दुख को जो देखेगा, उसके हाथ में दुख को खोलने की कुंजी आ जाती है । और मजे की बात है कि दुख को जो देखेगा, सामना करेगा, वह दुख का अनुगृहीत होगा । क्योंकि हर दुख एक चुनौती भी है । और हर दुख तुम्हें निखारने का एक उपाय भी है । और हर दुख ऐसे है, जैसे आग । और तुम ऐसे हो, जैसे आग में गुजरे सोना । आग से गुजरकर ही सोना कुंदन बनता है ।
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ओशो ~ एस धम्मो सनंतनो १२
१२० प्रवचन अप्प दीपो भव !
से संकलन ।
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