सोमवार, 2 दिसंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सब जग सूता नींद भर, जागै नाहीं कोइ ।*
*आगे पीछे देखिये, प्रत्यक्ष परलै होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
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जो नीतिशास्त्री हैं, नीतिशास्त्री अर्थात जिन्हें धर्म का कोई भी पता नहीं, जिनका चिंतन पाप और पुण्य से ऊपर कभी गया नहीं, वे कहेंगे, जितना पाप किया, उतना ही पुण्य करना पड़ेगा। जितना किया पाप, उतना ही पुण्य करना पड़ेगा। एक-एक पाप को एक-एक पुण्य से काटना पड़ेगा, तब ऋण-धन बराबर होगा; तब हानि-लाभ बराबर होगा और व्यक्ति मुक्त होगा।
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जो नीतिशास्त्री हैं, जिन्हें आत्म-अनुभव का कुछ भी पता नहीं, जिन्हें आत्मा का कुछ भी पता नहीं; जो केवल कर्म का लेखा-जोखा रखते हैं; वे कहेंगे, एक-एक पाप के लिए एक-एक पुण्य से साधना पड़ेगा। यदि अनंत पाप हैं, तो अनंत पुण्यों के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं।
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परन्तु तब मुक्ति असंभव है। दो कारणों से असंभव है। एक तो इसलिए असंभव है कि अनंत शृंखला है पाप की, अनंतपुण्यों की शृंखला करनी पड़ेगी। और इसलिए भी असंभव है कि कितने ही कोई पुण्य करे, पुण्य करने के लिए भी पाप करने पड़ते हैं।
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जीने में ही पाप हो जाएगा। पुण्य करने के लिए ही पाप हो जाएगा। कम से कम जीएंगे तो पुण्य करने के लिए, तब तो यह अनंत वर्तुल है, दुष्टचक्र है; इसके बाहर हम जा नहीं सकते। यदि पुण्य से पाप को काटने का प्रयास करे तो पुण्य करने में पाप हो जाएगा। फिर उस पाप को काटने की पुण्य से कोशिश की, तो फिर उस पुण्य करने में पाप हो जाएगा। हर बार पाप को काटना पड़ेगा। हर बार पुण्य से काटेंगे। पुण्य नए पाप करवा जाएगा। यह वर्तुल कभी अंत नहीं होगा।
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इसका अर्थ ही यह हुआ कि पाप की कोई सघनता नहीं होती। पाप है अंधेरे की तरह। एक गुफा में है अनंत वर्षों से, द्वार बंद हैं। अनंत वर्ष पुराना अंधेरा है। तो क्या हम दीया जलाएंगे, तो अंधेरा कहेगा, इतने से काम नहीं चलता, हम अनंत वर्षों तक दीए जलाएं, तब मैं कटूंगा?
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नहीं; हमने दीया जलाया कि अनंत वर्षों पुराना अंधेरा गया। वह यह नहीं कह सकता है कि मैं अनंत वर्ष पुराना हूं। वह यह भी नहीं कह सकता है कि अनंत वर्षों में बहुत सघन, हो गया हूं, इसलिए दीए की इतनी छोटी-सी ज्योति मुझे नहीं तोड़ सकती। अनंत वर्षों पुराना अंधेरा और एक रात का पुराना अंधेरा एक ही बराबर के होते हैं। उनमें कोई सघनता नहीं होती। अंधेरे की पर्तें नहीं होतीं; क्योंकि अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता। बस, आज आपने जलाई काड़ी, अंधेरा गया--अभी और यहीं।
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पाप को पुण्य से नहीं काटा जा सकता, क्योंकि पुण्य भी सूक्ष्म पाप के बिना नहीं हो सकता। पाप को तो केवल ज्ञान से काटा जा सकता है, क्योंकि ज्ञान बिना पाप के हो सकता है। क्योंकि ज्ञान बिना पाप के हो सकता है। ज्ञान कोई कृत्य नहीं है कि जिसमें पाप करना पड़े। ज्ञान अनुभव है। कर्म बाहर है, ज्ञान भीतर है। ज्ञान तो ज्योति के जलने जैसा है। जला, कि सब अंधेरा गया।
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फिर तो ऐसा भी पता नहीं चलता कि मैंने कभी पाप किए थे। क्योंकि जब मैं ही चला जाए, तो सब खाते-बही भी उसी के साथ चले जाते हैं। फिर मनुष्य अपने अतीत से ऐसे ही मुक्त हो जाता है, जैसे सुबह सपने से मुक्त हो जाता है। क्या कभी आपने ऐसा प्रश्न नहीं उठाया, सुबह हम उठते हैं, रातभर सपना देखा, तो जरा-सा किसी ने हिलाकर उठा दिया, इतने से हिलाने से रातभर का सपना टूट सकता है?
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नहीं, जरा-सा किसी ने हिलाया; पलक खुली; सपना गया। फिर हम यह नहीं कहते कि अब रातभर इतना सपना देखा, तो अब सपने के विरोध में इतना ही यथार्थ देखूंगा, तब सपना मिटेगा। सपना टूट जाता है। पाप भी सपने की भांति है। ज्ञान की जो सर्वोच्च घोषणा है, वह है कि पाप स्वप्न की भांति है। फिर पुण्य भी स्वप्न की भांति है। और सपने सपने से नहीं काटे जाते हैं। सपने सपने से काटेंगे, तो भी सपना देखना जारी रखना पड़ेगा।
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*इसलिए श्री कृष्ण कहते कि कितना ही बड़ा पापी हो तू, सबसे बड़ा पापी हो तू, तो भी मैं कहता हूं अर्जुन, कि ज्ञान की एक किरण तेरे सारे पापों को सपनों की भांति बहा ले जाती है। सुबह जैसे कोई जाग जाता, रात समाप्त, सपने समाप्त, सब समाप्त। जागे हुए व्यक्ति को सपनों से कुछ लेना-देना नहीं रह जाता*

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