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*दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।*
*दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *दास्य भक्ति*
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रैदासजी के पास भगवत् मूर्ति थी । ब्रह्माणों ने राजा से कहा - 'चमार जाति को भगवत् मूर्ति के पुजन का अधिकार नहीं । रैदास को दण्ड देना चाहिये और मुर्ति उससे ले लेनी चाहिये ।' अंत में यह निश्चय हुआ कि भगवान का सिंहासन रैदास और ब्रह्मणों के बीच में रख दिया जाय फिर वे दोनों उन्हें बुलावे । जिसके पास भगवान स्वयं चले जावे वे ही उन्हे ले जावें । वैसा ही किया गया । भगवान उछल कर के रैदास की अंक(गोद) जा बैठे । इससे सूचित होता है कि दास भक्त पर भगवान की विशेष प्रिति होती है ।
दास भक्त पर होत है, भगवत प्रीति विशेष ।
गये अंक रैदास के, तज के विप्र अशेष ॥१७९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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