शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

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*जब द्रवो तब दीजिये, तुम पै मांगूं येहु ।* 
*दिन प्रति दर्शन साधु का, प्रेम भक्ति दृढ़ देहु ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *सेवा*
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दादूपंथी मण्डलेश्वर संत गिरधारीदासजी का साधु सेवा में बड़ा प्रेम था । उनकी मण्डली से कोई साधु जुदा होने लगता तब उससे बहुत अनुनय-विनय करके पूछते कि आपको क्या कष्ट है ? क्यों जा रहे है ? साधु को सब सुविधाएं देने पर भी जब वह नहीं रुकता तब वे रो पड़ते थे । उन्हें साधु का वियोग परम असह्य था । इससे सूचित होता है कि साधुसेवी को साधु को वियोग असहय होता है ।
साधुसेवी को होत है, असह्य साधु वियोग ।
जात गिरधारि की, रोते लखते लोग ॥३३८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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