शनिवार, 14 दिसंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१२७ - त्रिताल
पीव ! हौं, कहा करूँ रे ?
पाइ परूँ कै प्राण हरूँ रे, अब हौं मरणैं नाहिं डरूँ रे ॥टेक॥
गाल मरूँ कै जाल मरूँ रे, कै हौं करवत शीश धरूँ रे ॥१॥
खाइ मरूँ कै घाइ१ मरूँ रे, कै हौं कत हूं जाइ मरूँ रे ॥२॥
तलफ मरूँ कै झूर मरूँ रे, कै हौं विरही रोइ मरूँ रे ॥३॥
टेर कह्या मैं मरण गह्या रे, दादू दुखिया दीन भया रे ॥४॥
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प्रभो ! मैं आपसे मिलने के लिये क्या करूँ ? आपके चरणों में पडूँगा, नहीं तो प्राण छोड़ दूँगा । 
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अब मैं मरने से तो नहीं डरता । मैं शरीर को हिम में गलाकर वो अग्नि में जलाकर वो शिर पर करवत धारण कर 
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वो विष खाकर वो शरीर पर शस्त्रों के आघात१ करके मर जाऊं वो कहीं निर्जन स्थान में जाकर प्रायोपवेशन द्वारा मर जाऊं ? 
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मैं विरही तड़प - तड़प कर विलाप करते हुये रो रो कर मर जाऊंगा । 
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मैंने उच्चस्वर से पुकार कर यह कह दिया है कि आपके दर्शन बिना मुझे मरना स्वीकार है, क्योंकि मैं आपके दर्शन बिना अति दीन और दुखी हो रहा हूं ।
(क्रमशः)

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