शनिवार, 14 दिसंबर 2019

= *सुकृत का अंग ९५(५३/५६)* =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू भोजन दीजे देह को, लिया मन विश्राम ।*
*साधु के मुख मेलिये, पाया आतमराम ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*सुकृत का अंग ९५*
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संबल१ सुकृत तौशा२ खैर३, रज्जब कह्या सु नाहीं गैर४ । 
खर्च खजाना पुण्य कर हाथ, जो वित चलै जीव के साथ ॥५३॥ 
हिन्दु कहते हैं - सुकृत परलोक के मार्ग का भोजनादि खर्च१ है । मुसलमान कहते हैं - खैरात३ आगे के रास्ते के लिये खाना२ है । इसलिये अपने धन का कोश अपने हाथ से ही पुण्य करने में खर्च कर, जो धन धर्म में खर्च करेगा वही जीव के साथ चलेगा । यह बात हमने परायी४ नहीं कही है । हिन्दु-मुसलमानों के धर्म की ही है ॥ 
तंदुल कोपी१ दोवटी२, रोटी पैसा पोट । 
जन रज्जब सुकृत बंध्या, समसरि३ का नहीं जोट४ ॥५४॥ 
चाँवल सुदामा भक्त ने श्री कृष्ण भगवान को दिया था । कौपीन१ द्रोपदी ने दुर्वासा ऋषि को दी थी । खादी कबीर ने एक गरीब को दी थी२ । रोटी तिमंगल ने एक संत को दी थी । पैसा दादू ने अहमदाबाद के कांकरिया तालाब पर वृद्ध रूप भगवान को दिया था । बीज की पोट धन्ना भक्त ने संतों को खिलाई थी, जिससे उसका खेत बिना बीज बोने पर भी अच्छा उत्पन्न हुआ था, यह प्रसिद्ध है उक्त तथा अन्य जो भी सुकृत के साथ बंध गया, उसके समान३ जोड़ी४ का कोई नहीं हो सकता । 
रज्जब सांई लग सुकृत सदा, सुखी सुकृति होय । 
पलटा१ पूरे पुरुष का, मेट न सकई कोय ॥५५॥ 
प्रभु की सेवा में लगकर सदा ही सुकृत करना चाहिये, सुकृति मनुष्य सुखी रहता है । सुकृत करने वाले पूर्ण पुरुष के सुकृत का बदला१ कोई भी नहीं मेट सकता, उसके सुकृत का फल उसे मिलता ही है । 
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द्रोपदी सुदामा क्या दिया, तिमरलंग क्या दादू । 
भले भाव पात्रहु पड्या, खानि उघाड़ी आदू ॥५६॥ 
द्रौपदी, सुदामा, तिमरलंग और दादू ने क्या दिया था ? उनके हाथों से कौपीन चावल, रोटी और पैसा भले ही भाव से पात्रों में पड़ा था, उनके सबके आदि स्वरूप परब्रह्म रूप आनन्द की खानि उघड़ गई अर्थात ब्रह्म का साक्षात्कार हो गया । 
(क्रमशः)

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