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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१२. अन्तर्लापिका. १८) =*
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*देह मध्य कहि कौंन कौंन या अर्थ हि पावै ।*
*इन्द्रिय नाथ सु कौंन कौंन सब काहू भावै ॥*
*पायें उपजत कौंन कौंन के शत्रु न जनमैं ॥*
*उभय मिलन कहि कौंन दुष्ट कै कहा न तनमैं ॥*
*अब सुन्दर कौ पावन जगत कौन रहे पुनि ब्यापि करि ।*
*“प्रान जान मन मान सुख साधू संग हित नाम हरि” ॥१८॥*
देह(शरीर) में क्या रहता है ? प्राण ।
उस पर निग्रह कौन करता है ? योगी(ज्ञानी) ।
इन्द्रियों का स्वामी कौन है ? मन ।
सभी प्राणियों को क्या प्रिय लगता है ? सम्मान(आदर) ।
क्या प्राप्त होने पर क्या उत्पन्न होता है ? सम्मान प्राप्त होने पर मन में सुख उत्पन्न होता है ।
किसका कोई शत्रु नहीं होता ? साधु महात्माओं का ।
दोनों का संग कब होता है ? दोनों के मिलने पर ।
दुष्ट के मन में क्या नहीं होता ? दूसरों का हित करने की इच्छा ।
महात्मा पूछते हैं – इस जगत् को पवित्र कौन करता है ? भगवान्(हरि) का नाम ।
कौन इस जगत् में सर्वत्र व्यापक है ? भगवान्(हरि) ही सर्वत्र व्याप्त हैं ।
इस प्रकार, महात्मा के कहें हुए “प्राण, जान, मन, मान, सुख, साधु, संग, हित, नाम एवं हरि”- इन सभी शब्दों का अर्थ आ गया ॥१८॥
(क्रमशः)
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