मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

= *सुकृत का अंग ९५(३७/४०)* =

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*बहुगुणवंती बेली है, मीठी धरती बाहि ।*
*मीठा पानी सींचिये, दादू अमर फल खाहि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*सुकृत का अंग ९५*
रज्जब अवनि१ आकाश बिच, सत जत२ थंभ सु दोय । 
या३ मंदिर आधार अहिं४, बिरला बूझै५ कोय ॥३७॥ 
पृथ्वी१ और अकाश के बीच सत्य और ब्रह्मचर्य२ ये दो ही स्तम्भ हैं, इस३ विश्व मंदिर के ये ही आधार हैं४ । इस बात को कोई बिरला५ ही समझता है । 
षट् दर्शन अर खलक की, लेणी दुवा१ दुर्लंभ२ । 
रज्जब रहै असंख्य युग, रोप्या कीरति थंभ ॥३८॥ 
नाथ, जंगम, सेवड़े , बौद्ध, सन्यासी, शेष, इन ६ प्रकार के भेषधारियों तथा संसार का आशीर्वाद१ लेना बड़ा दुर्लभ२ है, जो उक्त सबका आशीर्वाद प्राप्त करता है उसका कीर्ति स्तम्भ असंख्य युगों तक रुपा हुआ रहता है । 
परमारथ पृथ्वी बुवै, विभुति बीज हरि हेत । 
रज्जब रुचि भरि नीपजै, सती पुरुष का खेत ॥३९॥ 
परमार्थ रूप पृथ्वी में हरि के लिये माया रूप बीज बोये तो उस सत्य-धर्म को धारण करने वाले पुरुष का उक्त खेत रुचि भर कर फल देता है । 
अतीत१ अवनि२ हाली सती३, बाहो सुकृत बीज । 
भूखा भोजन करि खड़ो४, सम न होय द्यौ धीज५ ॥४०॥ 
संत१ रूप पृथ्वी२ में सदगृहस्थ३ रूप हाली को सुकृत रूप बीज बोना चाहिये, भूखे को भोजन देना रूप खेत जोतो४, इसके समान और कोई भी पुण्य नहीं है, इस वचन पर विश्वास५ करके दो । 
(क्रमशः)

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