शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग केदार ६(गायन समय सँध्या ६ से ९ रात्रि)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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११९ - गजताल
अरे मेरा अमर उपावणहार रे खालिक१, 
आशिक२ तेरा ॥टेक॥
तुम सौं राता, तुम सौं माता, 
तुम सौं लागा रंग, रे खालिक॥१॥
तुम सौं खेला, तुम सौं मेला, 
तुम सौं प्रेम स्नेह, रे खालिक ॥२॥
तुम सौं लेणा, तुम सौं देणा, 
तुम हीं सौं रत होइ, रे खालिक ॥३॥
खालिक मेरा, आशिक तेरा, 
दादू अनत३ न जाइ, रे खालिक॥४॥
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हे सृष्टिकर्ता१ ! आप अमर और मुझे उत्पन्न करने वाले हैं, मैं आप में प्रेम२ करने वाला हूं, आपमें अनुरक्त हूं । 
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आपके प्रेम में मस्त हूं, आपके चिन्तन - रँग में लगा हूं । 
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आपसे ही खेलता हूं, आप से ही मेरा प्रेमपूर्वक मेल तथा सच्चा स्नेह है । 
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मुझे आपको ही अपना सर्वस्व देकर, आप का स्वरूप प्राप्त करना है । इसीलिये मैं आप में ही अनुरक्त हो रहा हूं । 
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हे मेरे सृष्टि कर्ता स्वामिन् ! मैं आपका प्रेमी भक्त हूं, अन्यत्र३ अन्य के पास नहीं जा सकता ।
(क्रमशः)

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