🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
.
*दादू आनन्द आत्मा, अविनाशी के साथ ।*
*प्राणनाथ हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥१०४॥*
हमारी बुद्धि अविनाशी राम के स्मरण में अनुरक्त हो जाय, और हृदय में राम का ध्यान स्थिर हो जाय, तो सभी दुलभ पदार्थ भक्त के हस्तगत हो जाते हैं; फिर योगक्षेमवहन की तो चिन्ता ही क्या ! ॥१०८॥
.
*हिरदै राम रहै जा जन के, ताको ऊरा कौण कहै ।*
*अठ सिधि, नौ निधि ताके आगे, सनमुख सदा रहै ॥१०५॥*
जो हरि को भजते हैं वही सबसे अधिक धनवान् हैं । उनके चरणारविन्दों में जगत् में अभीप्सित आठों सिद्धियाँ और नवो निधियाँ स्वयं ही आकार नमस्कार करती हैं ।
“जो नित्य ‘श्रीराम, राम’-ऐसा जपते हैं ऊनि मुक्ति अवश्य होगी और भक्ति भी प्राप्त होगी ।” भागवत में लिखा है-
“महापुरुष पुरुषोत्तम भगवान् की आराधना करने वालों की, सिद्धियाँ दासी बन जाती है और उनके पीछे-पीछे घूमती फिरती है ।
(आठ सिद्धि और नौ निधियों के नाम मूल श्लोक से ही जान लेने चाहिये । वहाँ अर्थ स्पष्ट है ।)
जो इन्द्रियों को संयत कर, श्वास प्रश्वास का निरोधकर, मुझ में स्वचित्त को स्थिर करता है, ऐसे योगी को सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती हैं ॥१०४॥
.
*वंदित तीनों लोक बापुरा, कैसे दर्श लहै ।*
*नाम निसान सकल जग ऊपर, दादू देखत है ॥१०६॥*
त्रिलोकी में रहने वाले ब्रह्मादि देव भी श्रीहरि के भक्तों के दर्शन करने का प्रयत्न करते रहते हैं कि हमें भक्तों के दर्शन कैसे हो? अतः रामनाम की साधना, ध्वजा की तरह, सर्व साधनाओं में श्रेष्ठ है । लिखा है-
“जो भगवान् में मन लगानेवाले, शान्तवृत्ति, तथा भगवान् वासुदेव के भक्त हैं, उनके भी जो दास हैं, उनका मैं जन्म जन्मान्तर में भी दास हूँ ।”
हे अर्जुन ! मैं अपने भक्तों को भक्त नहीं मानता, किन्तु जो मेरे भक्तों के भक्त हैं, वे ही मेरे उत्तम भक्त हैं । यों तो मैं सदा मुक्त हूँ, परन्तु उन भक्तों ने मुझको भी प्रेमरज्जु से बांध लिया तथा अजित को जीत लिया । मैं किसी के वश में नहीं होता फिर भी मैं अपने भक्तों के तो वशीभूत ही रहता हूँ ।
हे राम ! आपके नाम की महिमा कहाँ तक बतायी जाय, और बता भी कौन सकता है ! जिस नाम के प्रसाद से मैं ब्रह्मर्षि पद को प्राप्त हो गया ॥१०५॥
.
*दादू सब जग नीधना, धनवंता नहीं कोइ ।*
*सो धनवंता जाणिये, जाके राम पदार्थ होइ ॥१०७॥*
विचार दृष्टि से देखा जाय तो सभी धनवान् पुरुष निर्धन ही हैं; क्योंकि धन के विषय में किसी को भी संतोष नहीं मिलता । जब तक सन्तोष न हो तब तक वे धन की तृष्णा से इधर-उधर भटकते हुए क्लेश पाते हैं । राम का भक्त तो राम की भक्ति के द्वारा सन्तोष धन पाकर सदा प्रसन्न रहता है । अतः भक्तों के पास राम नाम स्मरण रूप ही सब से बड़ा धन है । उसी धन से धनवान् होने के कारण वे लौकिक धन की इच्छा नहीं करते । नारदभक्ति सूत्र में लिखा है-
“जिस रामनाम धन को प्राप्तकर पुरुष सिद्ध हो जाता है अमर और नित्य तृप्त हो जाता है । और उसकी समग्र कामनाएँ निवृत्त हो जाती है । वह तब न शोक करता है, न द्वेष और न विषयों में रमण या उन की प्राप्ति के लिये कोई उत्साह ही दिखाता है । स्वयं संसार से तर जाता है, और दुसरों को भी इससे तार देता है ॥१०६॥”
.
*संगहि लागा सब फिरै, राम नाम के साथ ।*
*चिंतामणि हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥१०८॥*
जैसे जिसके पास चिन्तामणि है, उस चिन्तामणि के प्रभाव से समग्र पदार्थ, उसके संकल्पमात्र से ही आ जाते हैं, उसी प्रकार जिसके हृदय में रामनाम चिन्तामणि हैं उसके पास भी, संकल्प करते ही, सम्पूर्ण पदार्थ उपस्थित हो जाते हैं । कहा है-
“ ‘अच्युत’ नाम कल्पवृक्ष की तरह सभी कामनाएं पूर्ण करने वाला है । ‘अनन्त’ नाम कामधेनु के सदृश है । ‘गोविन्द’ नाम चिंतामनिके सदृश है ॥”
पद्मपुराण में भी कहा है-
कृष्ण का नाम चिन्तामणि है । वह पूर्णशुद्ध नित्यमुक्त चैतन्यरस विग्रह है; क्योंकि नाम और नामी में अभेद है ।”
यह सब जानकर निरन्तर भगवद्भजन करना चाहिये ॥१०७॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें