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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (९. गणना छप्पै पंचक. २) =*
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*अष्ठ सिद्धि के नाम*
*प्रथमहिं अणिमा सिद्धि दुतीय पुनि महिमा कहिये ।*
*तृतीय सु लघिमा जांनि चतुर्थी प्रापति लहिये ॥*
*प्राकाशक पंचमी ईषिता षष्ठी जांनहुं ।*
*अवसिता जु सप्तमी अष्टमी बसिता मानहुं ॥*
*ये अष्ट महा सिधि प्रगट ही ग्रन्थनि मांहिं वषांनिये ।*
*हरि भक्तनि के आधीन हैं सुन्दर यौं करि जांनिये ॥२॥*
*अष्ट(८) सिद्धि*
शास्त्र में आठ सिद्धि प्रसिद्ध हैं । उनमें प्रथम सिद्धि *अणिमा* तथा द्वितीय *महिमा* कही जाती है । तृतीय सिद्धि को *लघिमा* कहते हैं तथा चतुर्थ सिद्धि को *प्राप्ति* कहते हैं । पञ्चम सिद्धि को *प्रकाशक* तथा षष्ठ को *ईशित्व,* सप्तम को *अवशिता* एवं अष्टम को *वशिता* कहते हैं ।
परन्तु *अमरकोश*(संस्कृत शब्द कोष) में *कामावसायिता* के स्थान पर *गरिमा* दिया गया है, जैसे –
अणिमा लघिमा चैव गरिमा लघिमा तथा ।
प्राप्ति: प्राकाम्यमी शित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धय: ॥
तथा प्रकाशक के स्थान पर *प्राकाम्य* दिता गया है ।
इस रीति से शास्त्र में ये आठ वर्णित हैं । *श्रीसुन्दरदासजी* कहते हैं – इन आठों सिद्धियों की साधना हरिभक्तों के आधीन है ॥२॥
(क्रमशः)

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