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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू जरा काल जामण मरण, जहाँ जहाँ जीव जाइ ।*
*भक्ति परायण लीन मन, ताको काल न खाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*सुकृत का अंग ९५*
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मनसा१ मैली पाप करि, पुण्य पाणी करि धोय ।
सुमिरण साबुन लावतां, रज्जब ऊजल होय ॥१३॥
बुद्धि१ पाप करने से मैली हो गई है तो उसे पुण्य रूप जल और हरि स्मरण रूप साबुन लगाकर धोओ उज्वल हो जायेगी ॥
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अध१ अनन्त आतम कने२, युग अनन्त नहिं जाहिं ।
धर्म राय देखत चलें, पाप पिंड पल माँहि ॥१४॥
जीवात्मा के पास२ अनन्त पाप१ हैं, अनन्त युगों तक भी नष्ट नहीं कर सकते किन्तु धर्म रूप राजा को तो देखते ही शरीर से सब पाप एक पल में ही भाग जाते हैं ।
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तुपक२ तीर बरछी३ बहैं, कठिन१ काल की चोट ।
रज्जब कछु लागे नहीं, सत्य सिपर४ की ओट ॥१५॥
बन्दुक२ बाण और भाला३ आदि शस्त्र चलते हैं किन्तु ढाल४ की ओट हो तो योद्धा के कुछ भी चोट नहीं लगती, वैसे ही सत्य - सुकृत की ओट होने पर काल की भंयकर१ चोट भी नहीं लगती ।
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सतियों का सत रहत है, विघ्न न विध्नों माँहिं ।
प्रत्यक्ष पेखि पटूलिका१, पावक परचे नाँहिं ॥१६॥
सत्य को धारण करने वाले सती पुरुषों का सत रहता ही है । विघ्न में भी उनके काम में विघ्न नहीं होता देखो प्रत्यक्ष में ही धर्मात्मा प्रहलाद, के वस्त्र१ को भी अग्नि नहीं जलाता और होलिका शीतल, चीर धारण करने पर भी जल गई ।
इसी भाव की एक यह कथा भी है - एक धर्मात्मा सेठ का मुनीम कपड़े लाने गया था, उसने आकर सेठ से झूठ ही कहा कि - आपका माल अमुक गांव में अग्नि लगने से जल गया, यह गांव पंचायत का पत्र है । सेठ ने कहा - मेरे माल को अग्नि नहीं जलाता, माल तुमने ही गुम किया होगा । फिर अपने विश्वास पात्र मुनीम को एक रेशमी थान देकर उसके साथ भेजा और कहा जहां अग्नि लगा वहां इस थान को अग्नि लगाना यदि जल जावे तो समझेंगे कि हमारे माल को अग्नि ने जलाया है । मुनीम ने वहां जाकर वैसा ही किया थान नहीं जला ।
(क्रमशः)
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