मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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११७ - विनती । (गुजराती भाषा) दीपचन्दी ताल
मारा१० नाथ जी, तारो१ नाम लेवाड़२ रे,
राम रतन धदया मों राखे ।
मारा वाहला जी, विषया थी वारे३ ॥टेक॥
वाहला वाणी ने मन माँहे मारे, 
चितवन तारो चित्त राखे ।
श्रवण नेत्र आ४ इन्द्री ना गुण, 
मारा माँहेला मल ते नाखे ॥१॥
वाहला जीवाड़े५ तो राम रमाड़े६, 
मनें जीव्यानो७ फल ये आपे८ ।
तारा नाम बिना हूं ज्याँ ज्याँ बँध्यो, 
जन दादू ना बँधन कापे९ ॥२॥
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भगवत् परायणतार्थ भगवान् से विनय कर रहे हैं - मेरे१० नाथ जी ! आप मुझे तुम्हारा१ नाम चिन्तन कराइये२ । मेरा मन राम नाम - रत्न को हृदय में रख सके, ऐसी कृपा कीजिये, हे मेरे प्रिय प्रभुजी ! विषयों से मुझे बचाइये३ ।
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हे प्रिय ! मेरी वाणी से आपका ही कथन हो, मन से आपका ही मनन हो, चित्त भी निरन्तर आपका ही चिन्तन करता रहे और इन४ श्रवण नेत्रादि इन्द्रियों के विषयों की आसक्ति तथा मेरे भीतर के आसुरी गुण और पाप भावना रूप मल को त्याग दे, ऐसी कृपा कीजिये । 
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हे प्रिय ! यदि मुझे जीवित५ रखते हो, तो हे राम ! अपने स्वरूप में रमण६ करने दीजिये । मेरे जीने७ का यही फल प्राप्त८ हो । आपके नाम बिना मैं जहां - जहां बँधा हूं अर्थात् जिस - जिस में मेरा राग है, वह राग - बन्धन मुझ भक्त का काट९ दीजिये ।
(क्रमशः)

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