शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

स्मरण का अंग १०९/११५

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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*पुरुष प्रकाशित* 
*दादू भावै तहाँ छिपाइए, साच न छाना होइ ।* 
*शेष रसातल गगन धू, प्रगट कहिये सोइ ॥१०९॥* 
*दादू कहाँ नारद मुनिजना, कहाँ भक्त प्रहलाद ।* 
*परगट तीनों लोक में, सकल पुकारैं साध ॥११०॥* 
*दादू कहाँ शिव बैठा ध्यान धरै, कहाँ कबीरा नाम ।* 
*सो क्यों छाना होइगा, जेरु कहैगा राम ॥१११॥* 
*दादू कहाँ लीन शुकदेव था, कहाँ पीपा, रैदास ।* 
*दादू साचा क्यों छिपै, सकल लोक प्रकास ॥११२॥* 
*दादू कहाँ था, गोरख, भरथरी, अनंत सिधों का मंत ।* 
*परगट गोपीचन्द है, दत्त कहैं सब संत ॥११३॥* 
*अगम अगोचर राखिये, कर कर कोटि जतन ।* 
*दादू छाना क्यों रहै, जिस घट राम रतन ॥११४॥* 
*दादू स्वर्ग पयाल में, साचा लेवे नाम ।* 
*सकल लोक सिर देखिये, प्रकट सब ही ठाम ॥११५॥* 
भक्तों के हृदय में भगवान् निरावरण होकर विराजते हैं, भगवान् भक्तों को त्याग नहीं सकते । उनकी प्रेमरज्जु से वे बंधे हुए हैं । उनके वश में भी रहते हैं । भागवत में लिखा है- 
सम्पूर्ण विश्व में वे भक्त निर्धन होकर भी धन्य हैं । जिनके हृदय में भगवान् की भक्ति विद्यमान है, हरि भी उनके भक्तिभाव को देखकर अपना लोक त्यागकर उनके हृदय में आकर विराजते हैं । अतः भक्त भगवान् के प्रकाश से सर्वत्र प्रकाशित हो रहे हैं । चाहे वे कहीं भी रहें, किसी भी देश-काल में क्यों न हुए हो । 
जैसे शेष जी यद्यपि पाताल लोक में रहते हैं, परन्तु उन्हें सम्पूर्ण विश्व जानता है । ध्रुव जी ध्रुवलोक में तथा नारदजी सर्वदेश व्यापी हैं । प्रह्लाद तथा कैलास में शंकर, शुकदेव, पीपा, रैदास, गोरखनाथ, भर्तृहरि, गोपीचन्द, दत्तात्रेय इत्यादि महात्मा कब हुए थे, लेकिन आज भी भक्ति के बल से शोभित हो रहे हैं । 
शरीरों के नाश से उनका नाश नहीं हुआ । क्योंकि वे अपने यशः शरीर से सदा ही विद्यमान रहते हैं । भगवान् ने गीता में कहा है- “मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता” । जिनके हृदय में राम-रत्न रहता है उनको कोटि-कोटि यत्न करने पर भी कोई गुप्त नहीं रख सकता, क्योंकि सत्य कभी गुप्त नहीं रह सकता । ऐसे भक्त सकल शिरोमणि हो जाते हैं । ऐसे भक्तों की सर्वत्र पूजा होती हैं ॥१०९-११५॥ 
(क्रमशः)

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