#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (७. कविता लक्षण. ४) =*
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*मगण नगण मिंत भगण यगण भृत्य,*
*सगण रगण शत्रु जत सम नित्य हैं ।*
*मिलै दोइ मिंत सिद्धि मिंत भृत्य जय जानि,*
*मिंत सम मिलै कछु लक्षण कुछित्य हैं ॥*
*मिंत अरु शत्रु मिलै दुख उतपन्न होइ,*
*मिलै भृत्य मिंत करै कारिज को सत्य हैं ।*
*दास दोइ नाश होइ भृत्य सम हानि सोइ,*
*सुन्दर भिरती रिपु हारि कोउ पत्य हैं ॥४॥*
मगण एवं नगण परस्पर मित्र होते हैं तथा भगण एवं मगण परस्पर भृत्य होते हैं । सगण एवं रगण शत्रु तथा जगण एवं तगण परस्पर नित्य शत्रु होते हैं ।
दो मित्र गणों के मिलने पर सिद्धि, भृत्य एवं मित्र के मिलने पर जय, मित्रसमय गणों के मिलने पर कुछ अनित्य लक्षण उद्भुत होते हैं । मित्र एवं शत्रु के मिलने पर दुःख और भृत्य एवं मित्र के मिलने पर कार्य निश्चित ही सिद्ध होता है । दो दास गणों के मिलने पर नाश, दो भृत्यगणों के मिलने पर हानि एवं मृत्यु एवं शत्रु गणों के मिलने पर पराजय होती है ॥४॥
(क्रमशः)

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