गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

= १९९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*अन्तरगत औरै कछु, मुख रसना कुछ और ।* 
*दादू करणी और कुछ, तिनको नांही ठौर ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
=====================
साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
.
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *वैराग्य*
#################### 
मुगल शासन-काल में दक्षिण के रंजनम् गांव में शान्तोबा नामक एक धनी था । वह विषय सुख में ही निमग्न था । संत तुकाराम के संग से उनका जीवन बदला । वह सब कुछ त्याग कर वन में जाकर के हरि भजन करने लगा । 
एक ब्राह्मण अपनी पत्नी को बार बार यह कहकर कि - मैं शान्तोबा के पास जाकर भजन करूंगा दुखी किया करता था । 
एक दिन शान्तोबा भिक्षा के निमित उसी के घर पर आ निकले । ब्राह्मणी ने अपने पति की उपयुक्त बात उन्हें सुना कर कहा - भगवन मुझे पति-वियोग की बात सुनकर बड़ा क्लेश होता है। शान्तोबा - अब कहे तब कह देना कि - कहते क्या हो जाते क्यो नहीं ? 
ब्राह्मणी ने वैसा ही किया । ब्राह्मण कुपित होकर शान्तोबा के पास चला गया । भोजन के समय शान्तोबा ने ब्राह्मण को जल लाने के लिये भेज कर पीछे से उसका कम्बल फाड़कर फेंक दिया और लोटा छुपा दिया, शान्तोबा और उनकी पत्नी भोजन करने बैठ गये, उसे भोजन का न पुछा । 
इस व्यवहार से ब्राह्मण बड़ा दुखी हुआ । मांगने पर दो-चार छोटे छोटे फल दिये, उनसे सन्तोष न हुआ, कारण मार्ग चलकर आया था, भूख बहुत लगी थी । इस लिये लम्बा सांस छोड़ता हुआ बोला - घर होता तो ४ बार खाता शान्तोबा - भाई ! वैराग्य कहने से नहीं होता । चलो मैं तुम्हे घर पहुचा देता हूँ और ब्राह्मणी को भी समझा दूंगा । 
ब्रह्मण शान्तोबा के साथ घर चला गया फिर कभी भी ब्रह्मणी को उपर्युक्त बात नहीं सुनाई । इससे सुचित होता है कि वाणी मात्र का वैराग्य - वैराग्य नहीं होता ।
"कथन मात्र की विरति से, सरे न कुछ भी काम ।
शान्तोबा की बात सुन, विप्र गया फिर धाम ॥१९४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें