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*मन मनसा माया रती, पंच तत्व प्रकाश ।*
*चौदह तीनों लोक सब, दादू होहु उदास ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *समता*
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व्यासजी के आज्ञा से शुकदेवजी आत्मज्ञान प्राप्ति के लिये विदेहराज जनक की मिथिलापुरी में गये, तब सब प्रकार की भोग-सामग्री में, स्त्री-पुरुषों में, धूप -छाया में आदर-अनादर आदि में सम ही रहे ।
इसी कारण राजा जनक ने उनको यह कहते हुये कि - आप सुख-दुख, लोभ-क्षोभ, नाच-गान, भय-भेद आदि सबसे मुक्त परम ज्ञानी हैं । आप अपने ज्ञान में कमी मानते हैं, इतनी ही कमी है और आप में कोई कमी नहीं, महान सम्मान किया था ।
इससे सूचित होता है कि समता से ही महान सम्मान होता है ।
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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