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*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।*
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *दया*
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द्रौपदी के पांचों पुत्रों को सोते समय अश्वत्थामा ने मार दिया, तब उसे पकड़कर अर्जुन द्रौपदी के पास लाये । द्रौपदी ने दया आ गई । वे अर्जुन से बोली - हे आर्य, हे वीर, इन गुरु पुत्र को छोड़ दो । इनका वध करने से गुरु पत्नि को भी मेरे समान ही शोक में डूबना होगा । मैं ऐसा नहीं चाहती, यह कह करके अश्वत्थामा को छुड़वा दिया ।
पुत्रघाति पर भी दया, करत दयालु धीर ।
कहा द्रौपदी ने पार्थ से, गुरु सुत छोड़ो वीर ॥१३८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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